कब से शुरू होगी नवरात्रि, जानें तिथियां

- 17 अक्टूबर 2020 (शनिवार)- प्रतिपदा घटस्थापना
- 18 अक्टूबर 2020 (रविवार)- द्वितीया मां ब्रह्मचारिणी पूजा
- 19 अक्टूबर 2020 (सोमवार)- तृतीय मां चंद्रघंटा पूजा
- 20 अक्टूबर 2020 (मंगलवार)- चतुर्थी मां कुष्मांडा पूजा
- 21 अक्टूबर 2020 (बुधवार)- पंचमी मां स्कंदमाता पूजा
- 22 अक्टूबर 2020 (गुरुवार)- षष्ठी मां कात्यायनी पूजा
- 23 अक्टूबर 2020 (शुक्रवार)- सप्तमी मां कालरात्रि पूजा
- 24 अक्टूबर 2020 (शनिवार)- अष्टमी मां महागौरी, दुर्गा महा नवमी, पूजा दुर्गा, महा अष्टमी पूजा
- 25 अक्टूबर 2020 (रविवार)- नवमी मां सिद्धिदात्री, नवरात्रि पारणा, विजयादशमी
- 26 अक्टूबर 2020 (सोमवार)- दुर्गा विसर्जन

कोरोना के कहर के बीच इस बार शारदीय नवरात्र 17 अक्टूबर से शुरू हो रहे हैं। सदैव यह नवरात्र पितृपक्ष के समाप्त होने के अगले दिन से ही प्रारंभ हो जाते हैं,परंतु इस बार अधिक मास हो जाने के कारण पितृपक्ष और नवरात्र के बीच 1 महीने का अंतर आ गया है ।हालांकि नवरात्र कोरोना के कारण बहुत धूमधाम से ना बनाए जा सकेंगे ।परन्तु फिर भी धर्म व कर्मकांड माने जाने चाहिए।
सभी जानते हैं कि नवरात्र का हिंदू धर्म में कितना महत्व है ।माता दुर्गा शक्ति स्वरूपा है ।प्रकृति की इसी शक्ति की 9 दिन तक माता के अलग-अलग रूपों में पूजा की जाती है ।पूजा का विधान सभी परिवारों में अपने कुल व निवास स्थान के अनुसार होता है। अमावस्या की रात से अष्टमी तक, या प्रतिपदा से नवमी की दोपहर तक व्रत नियम से चलने का विधान है। इन दिनों में नौ रातें आ आ जाती हैं। नवरात्रों में हम देवी की आराधना वैदिक व तांत्रिक रीति दोनों से कर सकते हैं। इसीलिए इन 8 या 9 दिनों का जो व्रत पूजा उपवास आदि है उन नौ रातों के समूह को नवरात्र के नाम से जाना जाता है।
सनातन धर्म में अकारण ही कोई विधान नहीं निभाया जाता इन नौ रातों में जब मौसम बदलता है गर्मी से जाड़े आने लगते हैं हमारी इंद्रियों को अनुशासन व स्वच्छता की आवश्यकता होती है ।वातावरण व शरीर में तारतम्य स्थापित करने के लिए व पाचन तंत्र को पूरे साल के सुचारू रूप से क्रियाशील रखने के लिए हमारे शरीर की शुद्धि का जो पर्व मनाया जाता है इसे नवरात्रि कहा जाता है। वाह्य शुद्धि हम प्रतिदिन करते हैं। पाक्षिक शुद्धि हम हर एकादशी को करते हैं। मासिक शुद्धि हम हर पूर्णमासी को करते हैं ।छमाही शुद्धि हम इन नवरात्रों में करते हैं शुद्ध व सात्विक शरीर में ही शुद्ध व सात्विक प्राणों का निवास होता है। अतः यदि निराहार रहा जा सके तो अति उत्तम,यदि संभव न हो तो फलाहार, यदि यह भी संभव ना हो तो एक समय का भोजन ,और यदि यह भी संभव न प्रतीत हो तो तामसिक भोजन से दूरी अवश्य बनाएं।
नवरात्र का आगमन व्यक्ति विशेष समाज व देश काल के भविष्य का निर्धारण का भी मानक है। ऐसे तो माता दुर्गा का वाहन सिंह है, परंतु यह सिंह तभी माता दुर्गा का वाहन होता है जब शक्ति स्वरूपा माता दुर्गा युद्ध रत होती हैं । जब माता ममता स्वरूपा बनकर अपनी संतानों से मिलने धरती पर आगमन करती हैं तो वह अलग-अलग वाहनों पर आती हैं। ऐसा विवरण देवी भागवत पुराण में मिलता है ।
एक श्लोक के अनुसार सप्ताह के भिन्न-भिन्न दिनों में आगमन पर माता का वाहन भिन्न-भिन्न होता है ।अगर नवरात्र प्रतिपदा तिथि सोमवार या रविवार को हो तो माता गज पर आएंगी। यदि नवरात्र की प्रतिपदा शनिवार और मंगलवार को हो तो माता अश्व पर आएंगी। गुरुवार या शुक्रवार को नवरात्रि का आरंभ हो तब माता डोली पर आती हैं ।बुधवार का दिन होने पर माता नाव पर आरूढ़ होकर आती हैं। जब माता हाथी की सवारी पर आती हैं तब धरती पर पानी बहुत बरसता है। जब अश्व की सवारी करती हैं तब पड़ोसी देशों से युद्ध के हालात बनते हैं, व देश के भीतर राजनीतिक समस्याएं जन्म लेती हैं। जब माता नाव पर सवार होकर धरती पर आती हैं तो अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं ।और जब पालकी पर सवार होकर आते हैं तो महामारी का भय रहता है ।इस प्रकार माता के आगमन पर हम माता के व्यवहार से भविष्य का ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं।
जिस प्रकार माता के आगमन का ज्ञान होता है ,उसी प्रकार माता के गमन से भी बहुत सारी बातें पता चलती हैं। रविवार या सोमवार के दिन माता का गमन होता है, तो माता का गमन भैंसे की सवारी से होता है उस समय देश में रोग व शोक बनता है। माता का गमन शनिवार या मंगलवार को होने पर उनकी सवारी मुर्गा होता है यह कष्टों में बढ़ोतरी का संकेत है। बृहस्पतिवार को माता पालकी से या मनुष्य की सवारी से जाती हैं यह सुख व शांति की बढ़ोतरी का द्योतक है। बुधवार व शुक्रवार को माता का गमन हाथी पर होता है, यह अत्यधिक बारिश का संकेत देता है।
इन नवरात्र में माता से जनसाधारण की कष्ट मुक्त संसार की कुरौना जैसी महामारी से मुक्ति की प्रार्थना करनी चाहिए निश्चित ही माता इतनी दयावान है सभी की सुनेगी