
किस्सा अटल जी का
अटलजी की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में अगाध आस्था थी। इसी बीच सरसंघचालक की ओर से उन्हें लखनऊ बुलाया गया। वे लखनऊ जाकर पी-एच.डी. करने की इच्छा तो रखते ही थे, अतः उन्होंने पिताजी से लखनऊ जाकर इसकी आज्ञा माँगी तो उन्हें सहज ही आज्ञा मिल गई।
अटलजी लखनऊ पहुँच गए, किंतु वहाँ कुछ ऐसी परिस्थितियाँ बनीं कि वे पी-एच.डी. न कर सके। उस समय सरसंघचालक श्रीगुरुजी की इच्छा पर लखनऊ से एक समाचार-पत्र निकालने का प्रस्ताव पारित किया गया। इस समाचार-पत्र का नाम था ‘राष्ट्रधर्म‘
‘राष्ट्रधर्म’ का प्रथम अंक तीन हजार प्रतियों का निकाला गया। पहले यह विचार किया गया था कि इस पत्र की मात्र 5-6 सौ प्रतियाँ निकालकर पाठकों के विचार जाने जाएँ और देखा जाए कि इसकी कितनी प्रतियों की खपत हो सकती है। जब प्रथम अंक की तीन हजार प्रतियाँ भी कम पड़ गई तो इसकी पाँच सौ प्रतियाँ और निकालकर पाठकों में वितरित की गई। इस पत्र की लोकप्रियता का अनुमान इस बात से सहज ही लगाया जा सकता है कि इसका दूसरा अंक आठ हजार प्रतियों का निकाला गया। राष्ट्रधर्म’ से अटलजी ने पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा और शीघ्र ही सफलता का परचम लहरा दिया।
‘राष्ट्रधर्म’ की सफलता से अभिभूत होकर इसके प्रबंध निदेशक पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने एक नए पत्र ‘पाञ्चजन्य’ का प्रकाशन प्रारंभ किया। राष्ट्रधर्म’ के संपादन का कार्यभार पूर्णतया राजीव लोचन अग्निहोत्री को सौंपकर अटलजी ‘पाञ्चजन्य‘ का संपादन कार्य देखने लगे।