
अनुभव अवस्थी
पुराणों के अनुसार इस अनमोल धरा पर समय-समय पर मानव समाज के उत्थान के लिए संतों का इस पावन बसुंधरा में अवतरण होता रहा है, इसी धरा पर कठिन साधना करके अनेक संतों ने संसार में आध्यात्मिक ज्ञान का ऐसा प्रकाश फैलाया कि उसकी महत्ता अखिल ब्रह्माण्ड जानता है । हमारे देश में देवों की भूमि उत्तराखण्ड इस बात का प्रमाण है । उत्तराखंड की पावन धरा में यूं तो बहुत से तीर्थ स्थल हैं पर यहां पर नैनीताल के पास स्थित श्रीकैंची धाम अटूट विश्वास प्रेम और श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है यह पावन धाम विराट स्वरूप के धनी परम सनातनी बाबा नीम करौली महाराज की अमूल्य धरोहर है, आज के वर्तमान समय में इनकी उपमा सनातनी परोपकारी संतो में अतुलनीय व अनुकंपनीय है।
हिमालय की गोद में अपनी बेहद खूबसूरत छटा बिखेरता उत्तराखण्ड का यह अलौकिक श्रद्धा क्षेत्र प्रकृति की अमूल्य धरोहर में शामिल है। यहां की पावन व रमणीक पहाड़ी वादियों में पहुंचते ही सांसारिक मोह मायाजाल में लिप्त मानव जाति की अनेक शारीरिक व्याधियां शांत हो जाती है । यहां के ऐतिहासिक मनमोहक धरोहर रूपी रमणीय गुफाएं, आकर्षित मनभावन मंदिर यहां आने वाले हर श्रद्धालु को अपनी ओर आकर्षित करने में पूर्णतः सक्षम हैं। प्राचीन समय से ही भारत में ऋषि-मुनियों की अराधना व तपःस्थली के रूप में प्रसिद्ध इस पावन भूमि के पग-पग पर देवालयों व अटूट विश्वास के केन्द्रों की झलक मिलती है। उत्तराखंड में पहाड़ी वादियों में मन मोहने वाले झरने कल-कल धुन में मन को शांति प्रदान करने वाली व अपनी बहने वाली धारा से नृत्य करती नदियां अनायास ही पर्यटकों व श्रद्धालुओं को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। देवभूमि उत्तराखण्ड की आलौकिक वादियों में से एक दिव्य रमणीक लुभावना स्थल है ‘कैंची धाम’। ‘कैंची धाम’ जिसे ‘नीम किरौली धाम’ भी कहा जाता है, उत्तराखण्ड का ऐसा तीर्थस्थल है, जहां वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। अपार संख्या में श्रद्धालु व भक्तजन यहां पहुंचकर अराधना व श्रद्धा के पुष्प ‘श्री किरौली महाराज’ के चरणों में अर्पित करते हैं। यह अलौकिक श्रद्धा का केंद्र सर्वधर्म समभाव की मिसाल है। जहा हर वर्ग, धर्म का भेदभाव भूल सभी बाबा नीम करौली महाराज के दर्शन को उमड़ते हैं। इस स्थान की आस्था ऐसी कि बगैर निमंत्रण दूरदराज से लोग श्रद्धालुओं का यहा जमवाड़ा लगता है।श्रद्धालु कहते भी हैं की धाम में विराजे हनुमान के रूप में उन्हें बाबा नीम करौली महाराज के साक्षात दर्शन होते हैं । कहा जाता है कि हनुमानगढी में हनुमान जी का मदिर बाबा जी की भक्ति का ही स्वरूप है, यही नही देश के विभिन्न स्थानों में आपने रामभक्त हनुमान मदिर, भक्तों के कल्याण के लिए बनवाये बाबा नीम करौली गरीबों की सेवा को ही मानव जीवन की सार्थकता मानते थे । नीम करौली महाराज की अन्तिम लीला का क्षेत्र भगवान श्री कृष्ण की रासनगरी वृदावन रही है, हनुमान जी की महिमा की ज्योति का प्रचार प्रसार इनके जीवन का परम लक्ष्य रहा आज बाबा जी के बहुत से अन्य देशों में रमणीक आश्रम है ।
