बुज़ुर्गों के किस्से और आज की राजनीति

भारत भूषण
आज की राजनीति में मर्यादा और शालीनता खोजने पर भी नहीं दिखती, हालांकि कुछेक अपवाद हो सकते हैं किंतु जहां भी नज़र जाए नैतिकता का घोर अभाव स्पष्ट दिखता है। वरिष्ठजनों के श्रीमुख से राजनीतिक जीवन मे सद आचरण और विनम्रता से लदे नेताओं के किस्से सुनकर वर्तमान राजनीति और राजनेताओं के प्रति घृणा का भाव सहज ही बन जाता है।
मैं उस काल में नहीं था जब राजनीति में शुचिता हुआ करती थी, लेकिन बुज़ुर्ग बताते हैं कि एक वो भी दौर था जब अपने चिर प्रतिद्वंद्वी के लिए भी मर्यादित और सम्मानजनक शब्दों का प्रयोग किया जाता था। इसके साथ ही वे उस समय को भी याद करते हैं जब चलते चुनावों में भीड़ के बीच ही प्रत्याशी अपने से वरिष्ठ प्रतिद्वंद्वी का आशीर्वाद लेने चरण स्पर्श करते थे, और दूसरा प्रत्याशी उसे विजय का स्नेहिल आशीष दे दिया करते थे।
वरिष्ठजनों के अपने अनुभव रहे हैं जिन्हें नकारा नहीं जा सकता या जिनपर अविश्वास भी नहीं किया जा सकता, लेकिन ये भी सच है कि मौजूदा राजनीति अब सिर्फ ऐसा दंगल बन गई है जो दलदल में आयोजित है।
भोपाल की हुज़ूर विधानसभा के विधायक रामेश्वर शर्मा ने जहां कांग्रेसियों के घुटने तोड़ देने का फरमान जारी कर डाला तो वहीं इसी क्षेत्र के पूर्व विधायक (जो पहले भाजपा में थे अब कांग्रेस में हैं) जितेंद्र डागा ने रामेश्वर शर्मा को गंभीर शब्दों में लिखित चुनौती दे डाली।
रामेश्वर शर्मा हों या जितेंद्र डागा दोनों नेताओं का विवादों से नाता रहा है, लेकिन आज दोनों ही राजनीतिक मर्यादा को तोड़कर गुंडई और सड़कछाप भाषा का प्रयोग सार्वजनिक रूप से कर रहे हैं। दोनों ही नेता पूर्व और मौजूदा निर्वाचित जनप्रतिनिधि हैं, इनसे कम से कम इतना गिरने की उम्मीद पर तो जनता ने इनको नहीं चुना होगा। एक दूसरे को ललकारते इन नेताओं को देखती सुनती आवाम भी शायद ही इस मामले में इनसे सहमत हो।
यह तो स्पष्ट है कि “घुटने तोड़ दो” और “माँ का दूध पिया है तो” जैसी भाषा को स्वीकार नहीं किया जा सकता, कांग्रेस और भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सहित दोनों दलों के नेताओं को राजनीतिक मर्यादा स्थापित करने की दिशा में एकसाथ पहल करनी चाहिए। दोनों बदजुबान नेताओं को पार्टी से निष्कासित करने अथवा सार्वजनिक रूप से जनता से क्षमा याचना जैसी सजा देकर एक नज़ीर पेश करना ही चाहिए।