भाजपा की मूल शक्ति: कार्यकर्ताओं की सामाजिक सक्रियता व स्वीकार्यता

भोपाल , भारत भूषण

वैसे तो राजनीतिक दलों और व्यक्तियों में प्रतिस्पर्धा कोई नई बात नहीं होती लेकिन मौजूदा हालात में भाजपा के प्रचंड वेग ने लगभग सभी विपक्षी दलों को किनारे लगा रखा है। महंगाई, नोटबन्दी, जीएसटी, कोरोना और न जाने कितने मुद्दों पर विपक्षी पार्टियों ने भाजपा को घेरने की कोशिशें कीं किन्तु नतीजे के तौर पर उन्हें बहुत कुछ हासिल नहीं हुआ।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ हिंदुत्व और प्रखर राष्ट्रवाद के कारण ही भाजपा आज सिरमौर बनी बैठी है, मेरा मानना है कि विपक्ष के प्रमुख चेहरों के पास वो वाक्पटुता नहीं है जो होना चाहिये। इसके कई उदाहरण आपके सामने हैं, हिजाब विवाद के समय प्रियंका गांधी की ज़ुबान फिसली और बिकनी पहनने तक की पैरवी उन्होंने कर डाली। ऐसा नहीं है कि भाजपा नेताओं की ज़ुबान से कोई विवादित बयान नहीं निकलता, लेकिन विपक्ष में बैठे दलों की सोशल मीडिया विंग उन्हें भुनाने में भाजपा के मुकाबले कमतर ही साबित होती नजर आती है। सोशल मीडिया के दौर में चीजें बहुत तेज़ी से वायरल होतीं हैं और उनका अपना असर भी होता है, वाबजूद इसके विपक्षियों का सोशल मीडिया पर कमजोर प्रदर्शन उनकी लचर कार्यप्रणाली का उदाहरण है। इसके साथ ही एक विशेष बात ये भी है कि भाजपा के पास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसा बृहद संगठन है, भाजपा के लिए संघ न सिर्फ अभिभावक की भूमिका निभा रहा है बल्कि एक अभेद सुरक्षा कवच और अमोघ ब्रह्मास्त्र भी है। संघ की कार्यशैली का विरोध करने वालों के अपने पूर्वाग्रह हो सकते हैं, उनकी अपनी विचारधारा भी है लेकिन मेरे हिसाब से इस तथ्य मे कोई दोमत नहीं है कि संघ जैसे समर्पित और ध्येयनिष्ठ कार्यकर्ता अन्य किसी भी संगठन के पास नहीं हैं। आज देश के कोने कोने में घर घर मे लोगों के मन मे राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का स्थिर भाव यदि है तो सिर्फ संघ के समर्पित कार्यकर्ताओं की बदौलत ही है, स्पष्ट कर दूं कि यहां बात संघ की तारीफों के पुल बांधने की न होकर सत्यता को स्वीकार करने मात्र की है। सर्वविदित है कि संघ की विचारधारा के साथ चलने वाली सरकारें पहले कम ही राज्यों में थीं, केंद्र का हाल भी कुछ विशेष नहीं रहा। लेकिन विपरीत परिस्थितियों में भी लगातार समाज के हर तबके पर काम करते रहने के कारण ही संघ का विस्तार हुआ, संघ में लगातार वर्षभर कोई न कोई कार्यक्रम चलते रहते हैं जिसके चलते स्वयंसेवक सक्रीय रहते हैं। यही स्थिति भाजपा की भी है कार्यकर्ताओं को हमेशा सक्रिय और जनता के बीच बनाये रखने के उद्देश्य से संगठन लगातार कार्यक्रम देता है। दरअसल भाजपा ने इस तथ्य को सिद्ध किया है कि किसी भी चुनाव में जीत का दारोमदार जमीनी कार्यकर्ता की सामाजिक सक्रियता और स्वीकार्यता पर निर्भर करता है। भाजपा को इवेंट मैनेजमेंट कंपनी कहकर कोसने वाले ये भी देखें की भाजपा जब विपक्ष में रहकर राजनीति कर रही थी तब भी सालभर आयोजन करती थी और आज तक करती आ रही है, सभी जानते हैं कि जनता से जुड़े मुद्दों पर सबसे ज़ोरदार प्रदर्शन श्रृंखला भी भाजपा के ही बस की बात थी। ज्यादा समय नहीं बीता जब मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार थी तब पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान गांव गांव घूमकर कांग्रेस की नाकामियों को गिना रहे थे, सबने देखा है शिवराज ने ही किसानों की कर्जमाफी, आबकारी नीति, बिजली बिलों के मसले समेत हर मामले पर कांग्रेस के छक्के छुड़ा दिए थे। मुद्दा कोई भी रहा हो विपक्ष में रहने के बाद भी भाजपा के नेताओं से लेकर कार्यकर्ता तक हमेशा फ्रंट पर नज़र आये, ये सब संघ और भाजपा की उसकी सक्रियता से संभव रहा जो विभिन्न आयोजनों के माध्यम से प्राप्त होती है। एक बार चर्चा के दौरान एक महानुभाव ने कहा था “कोई भी संगठन तब तक जिंदा रह सकता है जब तक कार्यकर्ता सक्रिय है” विपक्ष में बैठे नेताओं से उम्मीद ही की जा सकती है कि वे जनहित के मुद्दों पर मुखर हो राजनीति करेंगे, अन्यथा भगवान भरोसे आप बैठे ही हैं।