रक्षाबंधन : एक वचन बहन के साथ देश और धर्म की रक्षा का

भारत भूषण विश्वकर्मा
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वैसे तो भाई बहन के प्रेम को किसी दिन विशेष तक सीमित करना या शब्दों में परिभाषित करना संभव ही नहीं है, किंतु ये भी सत्य है कि भाई बहन के रिश्ते में बसे दृढ़ विश्वास और अविरल स्नेह का रक्षाबंधन से बड़ा कोई प्रतीक पर्व सनातन संस्कृति में नहीं है। भले ही प्रेम और समर्पण को राखी का मूल भाव समझा जाये, लेकिन तनिक सी गहराई में झांकने पर ये पर्व शौर्य व सामर्थ्य के आरंभ का भी नज़र आता है। बहन की आजीवन रक्षा का वचन देते समय भाइयों के मन मे उत्पन्न होने वाले उत्साही भाव से ही उस सामर्थ्य की उत्पत्ति होती है, जो बहन की रक्षा की ढाल बन जाती है। रक्षाबंधन सिर्फ इसलिए महत्त्वपूर्ण नहीं है क्योंकि इस दिन राखी बांधी जाती है, बल्कि इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि इसके धागे ने भाई के दायित्व और बहन के विश्वास को बांध रखा है। इस त्यौहार का घरेलू खरीदी बाजार भी इंतज़ार करता है जो लाखों लोगों को रोजगार उपलब्ध कराता है, नारियल कुमकुम केसर से लेकर कपड़े और गहने यहां तक कि गाड़ियां और बंगले तक। भरोसे और ज़िम्मेदारी का ये त्यौहार भारत के बाजारों को नई रौनक भी देता है और भरपूर व्यापार भी। लेकिन विगत समय में घटी कुछ घटनाओं को देखते हुए अब यह अत्यंत आवश्यक हो गया है कि, रक्षाबंधन पर्व पर बहनों की रक्षा के संकल्प की भांति ही एक संकल्प देश और धर्म के लिए भी लेना होगा। सैकड़ों वर्षों की दासता से उबरी, विखंडन की पीड़ा से कराहती माँ भारती और सहस्त्रों वर्षों से दमनकारी षड्यंत्रों से जूझ रहे सनातन धर्म की विजय पताका लहराने का व्रत धारण करना होगा। इतिहास में लिखे अध्याय गवाह हैं क्रूर आततायी लुटेरों के, जिन्होंने हमारे देश को न सिर्फ लूटा बल्कि सनातनी अस्मिता के प्रतीक मंदिरों को तोड़ा भी। आज दुनिया की बड़ी युवा आबादी भारत मे है। युवाओं को स्वयं को “आबादी” से हटकर “शक्ति” सिद्ध करना ही होगा, और यह बिना संकल्प के असंभव है। युवाओं को संगठित होकर अखंड भारत के लिए प्राणपन से जुटने का वचन स्वयं को देना चाहिए, सनद रहे देश और धर्म की रक्षा का वचन ही इस देश के पुरुषार्थी युवाओं को उनका दायित्व याद दिलाएगा। युवाओं का स्वयं को दिया गया एक वचन भारत के पुनः विश्वगुरु के रूप में स्थापित हो दुनिया का प्रतिनिधित्व करने का आधार बनेगा।