
जब देश आजादी के 75 साल मनाने जा रहा है, तो हम सबको श्रीमद्भगवद्गीता के इस पक्ष को सामने रखने का प्रयास करना चाहिए
अनुभव अवस्थी
आज जब देश आजादी के 75 साल मनाने जा रहा है, तो हम सबको श्रीमद्भगवद्गीता के इस पक्ष को सामने रखने का प्रयास करना चाहिए कि कैसे इसने हमारी आजादी की लड़ाई को ऊर्जा दी, कैसे हमारे स्वाधीनता सेनानियों को देश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने का साहस दिया। pic.twitter.com/pRd1iBMJ1s
— Narendra Modi (@narendramodi) March 9, 2021
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 विद्वानों की टिप्पणियों वाली पांडुलिपि के 11 खंडों का विमोचन किया। इस मौके पर प्रधानमंत्री ने कहा कि गीता के विश्वरूप ने महाभारत से लेकर आजादी की लड़ाई तक हर कालखंड में हमारे राष्ट्र का पथप्रदर्शन किया है। भारत को एकता के सूत्र में बांधने वाले आदि शंकराचार्य ने गीता को आध्यात्मिक चेतना के रूप में देखा। गीता को रामानुजाचार्य ने आध्यात्मिक ज्ञान की अभिव्यक्ति के रूप में देखा। राजधानी के लोक कल्याण मार्ग स्थिति प्रधानमंत्री आवास पर आयोजित इस विमोचन समारोह में जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और वरिष्ठ नेता डॉ. करण सिंह भी उपस्थित थे। इन पांडुलिपियों का प्रकाशन धर्मार्थ न्यास द्वारा किया गया है। डॉ करण सिंह इसके अध्यक्ष हैं।
इस पुनीत कार्य से जुड़े हुए विद्वानों के प्रयास को आदरपूर्वक नमन करता हूं।
श्रीमद्भागवतगीता की 20 व्याख्याओं को एक साथ लाने वाले 11 संस्करणों का लोकार्पण करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, मैं इस पुनीत कार्य के लिए प्रयास करने वाले सभी विद्वानों, इससे जुड़े हर व्यक्ति और उनके हर प्रयास को आदरपूर्वक नमन करता हूं।उन्होंने आगे कहा कि किसी एक ग्रंथ के हर श्लोक पर ये अलग-अलग व्याख्याएं, इतने मनीषियों की अभिव्यक्ति, ये गीता की उस गहराई का प्रतीक है, जिस पर हजारों विद्वानों ने अपना पूरा जीवन दिया है। ये भारत की उस वैचारिक स्वतंत्रता का भी प्रतीक है, जो हर व्यक्ति को अपने विचार रखने के लिए प्रेरित करती है।
गीता ने हमारी आजादी की लड़ाई की लड़ाई को ऊर्जा दी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि भारत को एकता के सूत्र में बांधने वाले आदि शंकराचार्य ने गीता को आध्यात्मिक चेतना के रूप में देखा। गीता को रामानुजाचार्य जैसे संतों ने आध्यात्मिक ज्ञान की अभिव्यक्ति के रूप में सामने रखा। स्वामी विवेकानंद के लिए गीता अटूट कर्मनिष्ठा और अदम्य आत्मविश्वास का स्रोत रही है। गीता श्री अरबिंदो के लिए तो ज्ञान और मानवता की साक्षात अवतार थी। गीता महात्मा गांधी की कठिन से कठिन समय में पथप्रदर्शक रही है। गीता नेताजी सुभाषचंद्र बोस की राष्ट्रभक्ति और पराक्रम की प्रेरणा रही है। ये गीता ही है जिसकी व्याख्या बाल गंगाधर तिलक ने की और आज़ादी की लड़ाई को नई ताकत दी। ये गीता ही है जिसने दुनिया को निस्वार्थ सेवा जैसे भारत के आदर्शों से परिचित कराया। नहीं तो भारत की निस्वार्थ सेवा, विश्व बंधुत्व की हमारी भावना बहुतों के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं होती। हम सभी को गीता के इस पक्ष को देश के सामने रखने का प्रयास करना चाहिए। कैसे गीता ने हमारी आजादी की लड़ाई की लड़ाई को ऊर्जा दी। कैसे गीता ने देश को एकता के आध्यात्मिक सूत्र में बांधकर रखा। इन सभी पर हम शोध करें, लिखें और अपनी युवा पीढ़ी को इससे परिचित कराएं।
हमारे संस्कार और इतिहास आत्मनिर्भर भारत के संकल्प के रूप में एक बार फिर जागृत हो रहा है।
हमारा लोकतन्त्र हमें हमारे विचारों की आज़ादी देता है, काम की आज़ादी देता है, अपने जीवन के हर क्षेत्र में समान अधिकार देता है। हमें ये आज़ादी उन लोकतान्त्रिक संस्थाओं से मिलती है, जो हमारे संविधान की संरक्षक हैं। गीता तो एक ऐसा ग्रंथ है जो पूरे विश्व के लिए है, जीव मात्र के लिए है। दुनिया की कितनी ही भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया, कितने ही देशों में इस पर शोध किया जा रहा है, विश्व के कितने ही विद्वानों ने इसका सानिध्य लिया है। हमने जितनी ज्यादा प्रगति की, उतना ही मानव मात्र की प्रगति के लिए और प्रयास हम करते रहे। हमारे यही संस्कार और यही इतिहास आज आत्मनिर्भर भारत के संकल्प के रूप में एक बार फिर जागृत हो रहा है।
गीता तो एक ऐसा ग्रंथ है जो पूरे विश्व के लिए है, जीव मात्र के लिए है।
श्रीमद्भगवद्गीता हमें मार्ग दिखाती है, हम पर कोई आदेश नहीं थोपती। श्रीमद्भगवद्गीता के कर्मयोग को अपना मंत्र बनाकर देश आज गांव-गरीब, किसान-मजदूर, दलित-पिछड़े, समाज के हर वंचित व्यक्ति की सेवा कर उनका जीवन बदलने के लिए प्रयास कर रहा है। आज जब देश आजादी के 75 साल मनाने जा रहा है, तो हम सबको श्रीमद्भगवद्गीता के इस पक्ष को सामने रखने का प्रयास करना चाहिए कि कैसे इसने हमारी आजादी की लड़ाई को ऊर्जा दी, कैसे हमारे स्वाधीनता सेनानियों को देश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने का साहस दिया।
गीता तो एक ऐसा ग्रंथ है जो पूरे विश्व के लिए है, जीव मात्र के लिए है। दुनिया की कितनी ही भाषाओं में इसका अनुवाद किया गया, कितने ही देशों में इस पर शोध किया जा रहा है, विश्व के कितने ही विद्वानों ने इसका सानिध्य लिया है।
भारत की स्वतन्त्रता और सहिष्णुता का भी प्रतीक है,
ये भारत की उस वैचारिक स्वतन्त्रता और सहिष्णुता का भी प्रतीक है, जो हर व्यक्ति को अपना दृष्टिकोण, अपने विचार रखने के लिए प्रेरित करती है।डॉ कर्ण सिंह जी ने भारतीय दर्शन के लिए जो काम किया है, जिस तरह अपना जीवन इस दिशा में समर्पित किया है, भारत के शिक्षा जगत पर उसका प्रकाश और प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है।आपके इस प्रयास ने जम्मू कश्मीर की उस पहचान को भी पुनर्जीवित किया है, जिसने सदियों तक पूरे भारत की विचार परंपरा का नेतृत्व किया है।किसी एक ग्रंथ के हर श्लोक पर ये अलग-अलग व्याख्याएँ, इतने मनीषियों की अभिव्यक्ति, ये गीता की उस गहराई का प्रतीक है, जिस पर हजारों विद्वानों ने अपना पूरा जीवन दिया है।
कोरोना काल में विश्व की सेवा करना, सहायता नहीं, भारत के संस्कार है।
इसलिए, जब भी हम अपने अधिकारों की बात करते हैं, तो हमें अपने लोकतान्त्रिक कर्तव्यों को भी याद रखना चाहिए। हमारा लोकतन्त्र हमें हमारे विचारों की आज़ादी देता है, काम की आज़ादी देता है, अपने जीवन के हर क्षेत्र में समान अधिकार देता है। हमें ये आज़ादी उन लोकतान्त्रिक संस्थाओं से मिलती है, जो हमारे संविधान की संरक्षक हैं।आज एक बार फिर भारत अपने सामर्थ्य को संवार रहा है ताकि वो पूरे विश्व की प्रगति को गति दे सके, मानवता की और ज्यादा सेवा कर सके।हाल के महीनों में दुनिया ने भारत के जिस योगदान को देखा है, आत्मनिर्भर भारत में वही योगदान और अधिक व्यापक रूप में दुनिया के काम आयेगा। कोरोना जैसी महामारी में भारत ने खुद को भी संभाला और विश्व की भी सेवा की। इसके लिए भारत जो भी कर सकता है, उससे पीछे नहीं रहा है। जब विश्व के नेता इसे भारत द्वारा की गई सहायता बताते हैं, मुझे धन्यवाद देते हैं, तो मैं कहता हूं कि ये सहायता नहीं, भारत के संस्कार हैं।