बिहार की राजनीति में दलित वोट का धुर्वीकरण
रश्मि राजपूत प्रत्यंचा

बिहार में कुल 16 फिसदी दलित मतदाता है! बिहार में अनुसूचित जाति को बोलचाल की भाषा में दलित बोला जाता है! बिहार में दलित वोट के धुर्वीकरण करने के लिए पासवान से लेकर मांझी तक बैचेन हैं! चुनाव में ज्यादा वक्त नहीं बचा है! जीतनराम मांझी का महागठबंधन से हटना मुसहर वोट को प्रभावित कर सकता है! लेकिन आरजेडी प्रवक्ता विरेंद्र के बयान के अनुसार मुसहर जातियों के पहले से नेता लालू यादव हैं!
दूसरी ओर श्याम रजक का जदयू छोड़ महागठबंधन में शामिल होना उनकी जातियों के वोटबैंक में सैंधमारी है! बिहार में दलित समुदाय में 22 जातियाँ हैं! सभी दलित वोटों को जोड़ दें तो यादव वोटबैंक के लगभग बराबरी का टक्कर देता है! रविदास, मुसहर और पासवान जातियों का दलित वोट में 70 फिसदी हिस्सा है! सिर्फ पासवान की 5 प्रतिशत की भागीदारी है! पासवान जाति के नेता तौर पर रामविलास पासवान की पहचान है! चिराग के बदले तेवर जो नीतीश सरकार के लिए है! वो एक जाति के वोटबैंक को प्रभावित कर सकती है! सूत्रों के मुताबिक चिराग की अध्यक्षता में लोजपा 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है! दूसरी ओर जीतनराम मांझी फिर से जदयू में शामिल हो सकते हैं! फिलहाल चुनाव की धड़-पकड. की राजनीति शुरू है! अगले एक दो दिनों में कुछ राजनीति फेर_बदल होने की संभावना है!
जगजीवन राम से लेकर जीतन राम तक कई बड़े दलित राजनेता हुए, मगर यह दलितों की राजनीति को बेहतर स्वरूप नहीं दे पाये! आज भी दलित के नाम की राजनीति व वोटबैंक पर आधारित है लेकिन धरातलीय स्थिति इन लोगों की जस के तस है सुविधा के नाम पर कुछ नहीं इन्हें मिला! सीधे तौर पर कहा जाए तो वोटबैंक की राजनीति में इस्तेमाल!