

अनुभव अवस्थी
‘उदंत-मार्तंड’ की शुरुआत ने भाषायी स्तर पर लोगों को एक सूत्र में बाँधने का प्रयास किया। यह केवल एक पत्र नहीं था, बल्कि उन हजारों लोगों की जुबान था, जो अब तक खामोश और भयभीत थे। हिन्दी में पत्रों की शुरुआत से देश में एक क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ और आजादी की जंग। अगर यह कहा जाए कि स्वतंत्रता सेनानियों के लिए ये अखबार किसी हथियार से कमतर नहीं थे, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
अखबार बने आजादी का हथियार । अखबार और पत्र-पत्रिकाएँ आजादी के जाँबाजों का एक हथियार और माध्यम थे, जो उन्हें लोगों और घटनाओं से जोड़े रखता था। आजादी की लड़ाई का कोई भी ऐसा योद्धा नहीं था, जिसने अखबारों के जरिए अपनी बात कहने का प्रयास न किया हो।
क्रांतिकारियों के एक-एक लेख जनता में नई स्फूर्ति और देशभक्ति का संचार करते थे।
“बंगदूत”, “समाचार सुधा वर्षण” “केसरी”, “वंदेमातरम्”, “प्रताप”, “यंग इंडिया” आदि नाम हैं जिन्होंने भारत की आजादी में नई राह दिखाई।