मेरा रंग दे बसंती चोला, माई मेरा रंग दे बसंती चोला

23 मार्च हर भारतवासी का हृदय मां भारती के अमर बलिदानी भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव के स्मरण से विभोर हो जाता है
अनुभव अवस्थी
भारत एक महान् देश है। यहां का इतिहास बेहद गौरवशाली रहा है। यह देश अपने अंदर ऐसी कई संस्कृतियां समेटे हुए है, जिसने इसे विश्व की सबसे समृद्ध संस्कृति वाला देश बनाया है। यह देश उन वीरों की कर्मभूमि भी रही है, जिन्होंने अपने प्राणों की परवाह किए बिना इस देश के लिए कार्य किए हैं। अपने वतन के लिए प्राणों की बलि देने से भी हमारे वीर कभी पीछे नहीं हटे। देश को स्वतंत्र कराने के लिए देश के वीरों ने अपनी जान की आहुति तक दी। आज़ादी के बाद भी हमारे वीर सैनिकों ने सीमाओं पर हमारी हिफाजत के लिए अपने प्राणों को दांव पर लगाया।
भारत को आजादी दिलाने के लिए देश के सपूतों ने कई बलिदान दिए। कई तरह की यातनाएं सही। उन्ही बलिदानों में से सबसे महान बलिदान शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का माना जाता है। ये बलिदान हम कभी नही भूलते सकते हैं।23 मार्च 1931 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई गई थी। इसी दिन को हम शहीद दिवस के रूप में मनाते है। शहीद दिवस वैसे तो कई दिनों में मनाया जाता हैं। लेकिन भारतीयों में जो सबसे ज्यादा लोकप्रिय तिथि 23 मार्च 1931 है। इस दिन ही शहीद दिवस मनाया जाता है और भगत सिंह समेत सुखदेव और राजगुरु को याद किया जाता है।

मुकम्मल है इबादत और मैं वतन ईमान रखता हूं,
वतन की शान की खातिर हथेली पे जान रखता हूं,
क्यों पढ़ते हो मेरी आंखों में नक्शा किसी और का,
देशभक्त हूं दिल में हिंदुस्तान रखता हूं।
23 मार्च, 1931 की मध्यरात्रि को अंग्रेज़ हुकूमत ने भारत के तीन सपूतों- भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी पर लटका दिया था। शहीद दिवस के रूप में जाना जाने वाला यह दिन यूं तो भारतीय इतिहास के लिए काला दिन माना जाता है, पर स्वतंत्रता की लड़ाई में खुद को देश की वेदी पर चढ़ाने वाले यह नायक हमारे आदर्श हैं। इन तीनों वीरों की शहादत को श्रद्धांजलि देने के लिए ही शहीद दिवस के अवसर के रूप में मनाया जाता है। देशभक्त सुखदेव, भगतसिंह और राजगुरू को अंग्रेज सरकार ने 23 मार्च को लाहौर षडयंत्र केस में फाँसी पर चढा दिया था। इन वीरों को फाँसी की सजा देकर अंग्रेज सरकार समझती थी कि भारत की जनता डर जाएगी और स्वतंत्रता की भावना को भूलकर विद्रोह नही करेगी। लेकिन वास्तविकता में ऐसा नही हुआ बल्की शहादत के बाद भारत की जनता पर स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने का रंग इस तरह चढा कि भारत माता के हजारों सपूतों ने सर पर कफन बाँध कर अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ दी। उस दौरान जेल में हजारों कैदी थे, उन्होने भी डरने के बजाय पूरे जोश के साथ इंकलाब जिनंदाबाद, भारत माता की जय का आगाज किया। इंकलाब की गूंज पूरे लाहौर शहर में फैल गई। उनके शहादत की खबर से हजारो की संख्या में लोग जेल के बाहर इक्कठा होने लगे तथा इंकलाब जिन्दाबाद के नारे लगाने लगे। वहां मौजूद लोगों के उग्र प्रर्दशन से बचने के लिए पुलिस ने शवों को रातो-रात फिरोजपुर शहर में सतुलज नदी के किनारे ले जाकर जला दिया। जब लाहौर के निवासियों को ये पता चला तो अनगिनत लोग इन भारत माता के वीर शहीदों को श्रद्धांजली देने वहाँ पहुँच गये और लौटते समय इस पवित्र स्थल से स्मृति स्वरूप एक-एक मुठ्ठी मिट्टी अपने साथ ले गये। वहाँ पर शहीदों की याद में एक विशाल स्मारक बनाया गया है। जहाँ प्रतिवर्ष 23 मार्च को लोग उन्हे श्रद्धांजली अर्पित करते हैं। ऐसे वीर सपूत जिन्होने अपनी शहादत से स्वतंत्रता का अचूक आगाज किया और हर एक भारतीय के अंदर देशभक्ति की भावना को बढ़ावा दिया, उनके परिचय को शाब्दिक रूप देकर उनकी वीरता को नमन करने का एक छोटा सा प्रयास कर रहे हैः-

भगत सिंह- भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर 1907 को जिला लायल पुर के बंगा गाँव में हुआ था। पिता सरदार किशन और चाचा भी महान क्रान्तिकारी थे। अंग्रेज विरोधी गतिविधियों के कारण कई बार जेल गये थे। भगत सिहं के दादा भी स्वतंत्रता के पक्षधर थे। सिख होने के बावजूद भी वे आर्यसमाज की विचारधारा से प्रभावित थे। परिवार वाले भगत सिहं का विवाह करवाकर घर बसाना चाहते थे किन्तु भगत सिहं का मुख्य उद्धेश्य भारत माता को गुलामी की जंजीर से मुक्त कराना था। भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के साथ केंद्रीय असेम्बली में 2 बम फेंके थे, जिसके कारण उन्हे लाहौर केस के पूर्व कालेपानी की सजा भी मिली थी। प्रताप अखबार के कार्यलय में काम करते हुए वे सदा देश की स्वतंत्रता के लिए काम करते हुए हँसते-हँसते फाँसी पर चढ गये।
सुखदेव- सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 को लुधियाना में हुआ था। पिता का नाम रामलाल और माता का नाम श्रीमति रल्ली देई था। तीन वर्ष की अल्पआयु में ही पिता का साया सर से उठ गया था। ताया श्री चिन्तराम के संरक्षण में आपका बचपन बीता। चिन्तराम और सुखदेव के विचारों में काफी अंतर था। चिन्तराम राष्ट्रीय कांग्रेस से जुङे हुए थे जबकि सुखदेव क्रान्तिकारी विचारधारा के थे। सुखदेव पंजाब में क्रान्तिकारी संघटन का संचालन करते थे। सुखदेव को बम बनाने की कला में महारथ हासिल थी। वे सदैव अपनी जरूरतों को दरकिनार करते हुए अपने साथियों की जरूरतों पर विशेष ध्यान देते थे। जब वे जेल में थे तब उन्होने गाँधी जी को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होने गाँधी इरविन पैक्ट का विरोध किया था। गाँधी जी के उत्तर से पहले ही सुखदेव को फाँसी की सजा दे दी गई थी। गाँधी जी का पत्र नवजिवन पत्रिका में प्रकाशित किया गया था।
राजगुरू- क्रान्तिकारियों के गढ, बनारस में जन्में राजगुरू का पूरा नाम राजगुरू हरि था। चंद्रशेखर के सबसे विश्वशनीय राजगुरू की परवरिश कट्टर हिन्दुओं के मध्य हुई थी किन्तु बाद में उनका मन क्रान्तिकारी विचारधारा से प्रभावित हो गया। राजगुरू निशानेबाजी में भी सिद्धस्त थे। लाहौर केस में मुख्य अभियुक्त के रूप में उन्हे 30 सितंबर 1929 को पूना से गिरफ्तार किया गया था।
सुखदेव, राजगुरू और भगत सिंह की देशभक्ति और बलिदान ने आजदी के लिए प्रत्येक भारतीय में जो जन जागृति का संचार किया वो इतिहास में सुनहरे अक्षरों में अविस्मरणिय है। जनमानस के ह्रदय में इंकलाब और भारत माता की जय की गूंज को पहुचाने वाले देश के इन अमर वीर सपूतों को उनके बलिदान पर प्रत्यंचा परिवार श्रद्धांजलि सुमन अर्पित करते हैं।
शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा।
