धर्मनेहा श्रीप्रत्यंचा

जानिए हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व:ज्योतिषाचार्य नेहा श्री

अमावस्या
हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व है। इस दिन शुभ कार्य किए जाते हैं। इसके अलावा इस तिथि पर लोग अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्राद्ध कर्म भी करते हैं। अमावस्या के दिन नदी स्नान, दान-पुण्य और पितृ तर्पण करना शुभ फलदायी माना जाता है।माना गया है कि मृत्युलोक का एक पखवाड़ा पितरों का एक दिन होता है। पूर्णिमा व अमावस्या को पितरो को जल अर्पण करने व श्राद्ध कर्म करने से उनको सन्तुष्टि मिलती है।

हिंदू पंचांग के अनुसार, कृष्ण पक्ष की आखिरी तिथि अमावस्या तिथि होती है। अमावस्या तिथि हर महीने आती है। मान्यता है कि इस दिन धार्मिक कार्य, पूजा-पाठ और मंत्र जाप आदि कर शुभ फल देने वाला होता है। कहा जाता है कि व्यक्ति को बुरे कर्म और बुरे विचारों से भी दूर रहना चाहिए।
ज्येष्ठ मास
हिन्दु पंचांग के तीसरे माह ज्येष्ठ यानी बड़ा होता है।इसमे मनाये जाने वाले त्योहार भी बड़े है जैसे ज्येष्ठ का हर मंगल बड़ा मंगल कहलाता है व विशेष फलदायी है।ज्येष्ठ मास में सूर्य देव तीव्र व तीक्ष्ण होते हैं।
शनि जयंती 2021
हिन्दू पंचांग की मानें तो, हर वर्ष की ज्येष्ठ अमावस्या की तिथि के दिन ही शनि जयंती मनाई जाने का विधान है. कई पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यही वो तिथि है जब सूर्य देव और माता छाया के पुत्र शनिदेव का जन्म हुआ था. इसलिए इस दिन कर्मफल दाता शनि देव की विधि अनुसार पूजा-अर्चना कर, कोई भी जातक अपनी कुंडली में मौजूद हर प्रकार के शनि ग्रह से जुड़े दोष दूर कर सकता है.
ज्येष्ठ अमावस्या की पूजा
अमावस्या के दिन प्रात: पवित्र नदी, जलाशय अथवा कुंड आदि में स्नान करना चाहिए। हालांकि इस समय महामारी का समय है, तो आप घर पर ही स्नान कर लें, यह उत्तम रहेगा। चाहें तो बाल्टी के पानी में गंगा जल डालकर स्नान कर सकते हैं। इस दिन सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद पितरों का तर्पण करना चाहिए। तांबे के पात्र में जल, लाल चंदन और लाल रंग के पुष्प डालकर सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए। पितरों की आत्मा की शांति के लिए उपवास करें। अमावस्या के दिन किसी गरीब व्यक्ति को दान-दक्षिणा दें
सावित्री कथा
मद्र देश के राजा अश्वपति को पत्नी सहित सन्तान के लिए सावित्री देवी का विधिपूर्वक व्रत तथा पूजन करने के पश्चात पुत्री सावित्री की प्राप्त हुई। फिर सावित्री के युवा होने पर एक दिन अश्वपति ने मंत्री के साथ उन्हें वर चुनने के लिए भेजा। जब वह सत्यवान को वर रूप में चुनने के बाद आईं तो उसी समय देवर्षि नारद ने सभी को बताया कि महाराज द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान की शादी के 12 वर्ष पश्चात मृत्यु हो जाएगी। इसे सुनकर राजा ने पुत्री सावित्री से किसी दूसरे वर को चुनने के लिए कहा मगर सावित्री नहीं मानी। नारदजी से सत्यवान की मृत्यु का समय ज्ञात करने के बाद वह पति व सास-ससुर के साथ जंगल में रहने लगीं।

इसके बाद नारदजी की बताए समय के कुछ दिनों पूर्व से ही सावित्री ने व्रत रखना शुरू कर दिया। जब यमराज उनके पति सत्यवान को साथ लेने आए तो सावित्री भी उनके पीछे चल दीं। इस पर यमराज ने उनकी धर्म निष्ठा से प्रसन्न होकर वर मांगने के लिए कहा तो उन्होंने सबसे पहले अपने नेत्रहीन सास-ससुर के आंखों की ज्योति और दीर्घायु की कामना की। फिर भी पीछे आता देख दूसरे वर में उन्हें अपने ससुर का छूटा राजपाट वापस मिल गया।

आखिर में सौ पुत्रों का वरदान मांगकर सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण वापिस पाए। ऐसे सावित्री के पतिव्रत धर्म और विवेकशील होने के कारण उन्होंने न केवल अपने पति के प्राण बचाए, बल्कि अपने समस्त परिवार का भी कल्याण किया।
व्रत व पूजन विधि
इस दिन सुहागन महिलाएं पूरे सोलह श्रृंगार करके शारिरिक सामर्थ्य के अनुसार व्रत रखती हैं। इस दिन सुबह पूजा अर्चना के बाद बड़ यानी बरगद के वृक्ष की पूजा की जाती है व उसके चारों ओर परिक्रमा करके उसे सूट के बंधन में बांध कर उससे अपने पति की लम्बी उम्र का वरदान मांगा जाता है,व अपने से बडी माताओं, बहनों से आशीर्वाद लिया जाता है।।ऐसी मान्यता है कि जो बरगद का पेड़ लगाता है, उसका संरक्षण करता है व उसे पूजता है उसके वंश में वृध्दि होती है। व उसे यश और कीर्ति मिलती है।

pratyancha web desk

प्रत्यंचा दैनिक सांध्यकालीन समाचार पत्र हैं इसका प्रकाशन जबलपुर मध्य प्रदेश से होता हैं. समाचार पत्र 6 वर्षो से प्रकाशित हो रहा हैं , इसके कार्यकारी संपादक अमित द्विवेदी हैं .

Related Articles

Back to top button
Close
%d bloggers like this: