

करवा चौथ का पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह व्रत महिलाएं अपनी पति की लंबी आयु की कामना के लिए रखती हैं। इस व्रत में महिलाएं पूरे दिन निर्जला रहती हैं और शाम को चांद के उदय होने के बाद व्रत खोलती हैं। इस व्रत में शिव परिवार सहित चंद्र देवता की भी पूजा की जाती है। इस व्रत में कुछ नियम हैं, जिनका पालन जरूर किया जाना चाहिए:
1.इस व्रत में कहीं सरगी खाने का रिवाज है, तो कहीं नहीं है। इसलिए अपने परंपरा के अनुसार ही व्रत रखना चाहिए। सरगी व्रत के शुरू में सुबह दी जाती है। एक तरह से यह आपको व्रत के लिए दिनभर ऊर्जा देती है।
2.इस व्रत में महिलाओं को पूरा श्रृंगार करना चाहिए। इस व्रत में महिलाएं मेहंदी से लेकर सोलह श्रृंगार करने चाहिए।
3.चंद्रमा के आने तक रखा जाता है व्रत: इस व्रत को चंद्रमा के आने तक रखते हैं। उसके बाद व्रत को पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोला जाता है। लेकिन इसके पहले निर्जला व्रत रखा जाता है। हर जगह अपने-अपने रिवाजों के अनुसार व्रत रखा जाता है।
4.करवों से पूजा : इस व्रत में मिट्टी के करवे लिए जाते हैं और उनसे पूजा की जाती है। इसके अलावा करवा चौथ माता की कथा सुनना भी बहुत जरूरी है।
5.करवा चौथ की पूजा में भगवान शिव, गणेश, माता पार्वती और कार्तिकेय सहित नंदी जी की भी पूजा की जाती है।
6. पूजा के बाद चंद्रमा को छलनी से ही देखा जाता है और उसके बाद पति को भी उसी छलनी से देखते हैं।
विवाहित महिलाओं का पति की लंबी उम्र की कामना के लिए रखा जाना महापर्व करवाचौथ इस बार कई अच्छे संयोग में आ रहा है। इस बार जहां करवा चौथ पर सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है, वहीं शिवयोग, बुधादित्य योग, सप्तकीर्ति, महादीर्घायु और सौख्य योग का भी निर्माण हो रहा है। ये सभी योग बहुत ही महत्वपूर्ण हैं और इस दिन की महत्ता और भी बढ़ाते हैं। खास तौर पर सुहागिनों के लिए यह करवा चौथ अखंड सौभाग्य देने वाला होगा। इस बार करवा चौथ कथा और पूजन का शुभ मुहूर्त 5:34 बजे से शाम 6:52 बजे तक है
करवा चौथ यानि पति के लिए आयु की प्रार्थना, इस वर्ष यह व्रत 4 नवम्बर यानि कल किया जाएगा।
पवित्र करवा चौथ:
✓करवा चौथ दो शब्दों से मिलकर बना है, ‘करवा’ यानि कि मिट्टी का बर्तन व ‘चौथ’ यानि गणेशजी की प्रिय तिथि चतुर्थी, प्रेम,त्याग व विश्वास के इस अनोखे महापर्व पर मिट्टी के बर्तन यानि करवे की पूजा का विशेष महत्व है, जिससे रात्रि में चंद्रदेव को जल अर्पण किया जाता है।
✓करवा चौथ: ये एक ऐसा दिन है जिसका सभी विवाहित स्त्रियां साल भर इंतजार करती हैं और इसकी सभी विधियों को बड़े श्रद्धा-भाव से पूरा करती हैं. करवाचौथ का त्योहार पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है. कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत किया जाता है. कार्तिक मास की चतुर्थी जिस रात रहती है उसी दिन करवा चौथ का व्रत किया जाता है।
✓करवा चौथ के त्योहार में पूजापाठ की बहुत ही अहम भूमिका होती है, महिलाएं सारे दिन निर्जला व्रत रखकर शाम को समूह में पूजा करती हैं, करवा चौथ की पूजा सामान्य तौर पर अकेले नहीं की जाती है, हालांकि आज के दौर में कई बार महिलाएं परिवार से दूर रहती हैं तो उन्हें अकेले ही पूजा करनी पड़ती है, ऐसे में यदि पति भी पूजा में पत्नी के साथ शामिल हों तो यह बहुत ही अच्छा माना जाता है और दोनों के रिश्ते में भी मजबूती आती है।
✓करवाचौथ की पूजा में इन चीजों का बहुत महत्व होता है। अब आपको बताते हैं इनके बारे मे:-
1 : सींक: मां करवा की शक्ति का प्रतीक, करवाचौथ के व्रत की पूजा में कथा सुनते समय और पूजा करते समय सींक जरूर रखें। ये सींक मां करवा की उस शक्ति का प्रतीक हैं, जिसके बल पर उन्होंने यमराज के सहयोगी भगवान चित्रगुप्त के खाते के पन्नों को उड़ा दिया था।
2 : करवा का महत्व
माता का नाम करवा था। साथ ही यह करवा उस नदी का प्रतीक है, जिसमें मां करवा के पति का पैर मगरमच्छ ने पकड़ लिया था। आजकल बाजार में पूजा के लिए आपको बेहर खूबसूरत करवे मिल जाते हैं।
3 करवा माता की तस्वीर अन्य देवियों की तुलना में बहुत अलग होती है। इनकी तस्वीर में ही भारतीय पुरातन संस्कृति और जीवन की झलक मिलती है। चंद्रमा और सूरज की उपस्थिति उनके महत्व का वर्णन करती है।
4 दीपक के बिना पूजा नहीं होती पूरी हिंदू धर्म में कोई भी पूजा दीपक के बिना पूरी नहीं होती। इसलिए भी दीपक जरूरी है क्योंकि यह हमारे ध्यान को केंद्रित कर एकाग्रता बढ़ाता है। साथ ही इस पूजा में दीपक की लौ, जीवन ज्योति का प्रतीक होती है।
5 : छलनी है पति को देखने को लिए
व्रत की पूजा के बाद महिलाएं छलनी से अपने पति का चेहरा देखती हैं। इसका कारण करवा चौथ में सुनाई जानेवाली वीरवती की कथा से जुड़ा है। जैसे, अपनी बहन के प्रेम में वीरवती के भाइयों ने छलनी से चांद का प्रतिविंब बनाया था और उसके पति के जीवन पर संकट आ गया था, वैसे कभी कोई हमें छल न सके।
6: लोटे का यह है अर्थ
चंद्रदेव को अर्घ्य देने के लिए जरूरी होता है लोटा। पूजा के दौरान लोटे में जल भरकर रखते हैं। यह जल चंद्रमा को हमारे भाव समर्पित करने का एक माध्यम है। वैसे भी हर पूजा में कलश को गणेशजी के रूप में स्थापित किया जाता है।
7: थाली है शुभ
पूजा की सामग्री, दीये, फल और जल से भरा लोटा रखने के लिए जरूरी होती है एक थाली की, इसी में दीपक रखकर मां करवा की आरती उतारते हैं, सच्चे मन से माता से आशीर्वाद मांगें।
✓पवित्र व्रत के नियम✓
महिलाएं सुबह सूर्योदय के बाद पूरे दिन भूखी-प्यासी रहती हैं, दिन में शिव, पार्वती और कार्तिक की पूजा की जाती है, शाम को देवी की पूजा होती है, जिसमें पति की लंबी उम्र की कामना की जाती है, चंद्रमा दिखने पर महिलाएं छलनी से पति और चंद्रमा की छवि देखती हैं, पति इसके बाद पत्नी को पानी पिलाकर व्रत तुड़वाते हैं।
✓पति के लिएं सोलह श्रृंगार है महत्त्वपूर्ण✓
पवित्र करवा चौथ के दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं सोलह श्रृंगार में माथेपर लंबी सिंदूर अवश्य हो, क्योंकि यह पति की लंबी उम्र का प्रतीक है, सिन्दूर, मंगलसूत्र, मांग टीका, बिंदिया, काजल, नथनी, कर्णफूल, मेहंदी, कंगन, लाल रंग की चुनरी, बिछिया, पायल, कमरबंद, अंगूठी, बाजूबंद और गजरा ये 16 श्रृंगार में आते हैं।
✓व्रत विधि✓
व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें:
•मम सुख सौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर
•श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।
✓दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें, इसे वर कहते हैं, चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है।
✓आठ पूरियों की अठावरी बनाएं, हलुआ, पुड़े बनाएं, पक्के पकवान बनाएं।
✓पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं।
✓गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें।
✓जल से भरा हुआ लोटा रखें।
✓बायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। ✓करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें।
✓रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं।
✓गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु की कामना करें।
•नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्,
•प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे।
✓करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें।
✓कथा सुनने के बाद अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें।
✓13 दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें।
शुभ मुहूर्त
करवा चौथ पूजा का शुभ मुहूर्त बुधवार 4 नवंबर को शाम 05 बजकर 34 मिनट से शाम 06 बजकर 52 मिनट तक का रहेगा. चंद्र उदय के विषय में कहा जा रहा है कि शाम 07 बजकर 57 मिनट पर चांद के दर्शन होंगे।
✓करवा चौथ व्रत✓
पति कि लंबी आयु के लिए रखा जाने वाला करवाचौथ का व्रत सूर्योदय से पहले शुरू हो जाता है और चांद निकलने के बाद खत्म होता है, सुहागिन महिलाएं चांद को अर्घ्य देने के बाद छलनी में दीपक रख कर चंद्रमा की पूजा करती है और फिर इसी छलनी से पति को देखती हैं, इसके बाद पति के हाथों पानी पीकर अपना दिनभर का निर्जला व्रत खोलती हैं, शाम के समय चंद्र उदय से एक घंटा पहले पूरे शिव परिवार की पूजा का विधान है, पूजन के समय व्रत रखने वाली महिलाओं को पूर्व दिशा की और मुख करके बैठना चाहिए।
✓आज चंद्रमा की पूजा क्यों होती है✓
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार करवा चौथ का व्रत पति-पत्नी रिश्ते की डोर को और अधिक मजबूती प्रदान करता है, चंद्रमा को आयु, सुख और शांति का कारक माना गया है और इनकी पूजा से शादी शुदा जिंदगी खुशहाल बनती है और पति की आयु भी लंबी होती है।
✓करवा चौथ व्रत कथा✓
करवा चौथ के व्रत के दौरान व्रत रखने वाली महिलाएं एक पौराणिक कथा सुनती हैं, इस कथा के अनुसार, एक साहूकार के सात बेटे थे और उसकी करवा नाम की एक बेटी भी थी, एक बार करवा चौथ के दिन साहूकार के परिवार में व्रत रखा गया, रात को जब सब भोजन करने लगे तो करवा के भाइयों ने उसे भी भोजन करने के लिए कहा लेकिन उसने मना कर दिया।
उसने कहा कि वह चांद को अर्घ्य देकर ही भोजन करेगी, सुबह से भूखी-प्यासी बहन की हालत भाइयों से देखी नहीं जा रही थी, इस कारण सबसे छोटा भाई दूर एक पीपल के पेड़ पर एक दीप प्रज्वलित कर आया और अपनी बहन से बोला: व्रत तोड़ लो चांद निकल आया है, बहन अपने भाई की चतुराई को भांप नहीं पाई और उसने खाने का निवाला मुंह में रख लिया, जैसे ही उसने निवाला खाया उसे उसके पति की मृत्यु की सूचना मिली, दुख के कारण वह अपने पति के शव को लेकर एक साल तक बैठी रही और उसके ऊपर उगने वाली घास को इकट्ठा करती रही।
अगले साल कार्तिक कृष्ण चतुर्थी फिर से आने पर उसने पूरे विधि-विधान के साथ करवा चौथ माता का व्रत किया जिसके फलस्वरूप उसका पति जीवित हो उठा, तभी से हर सुहागिन महिला करवा चौथ का व्रत पूर नियम के साथ रखती आ रही हैं।