
नारियल हिंदू धर्म में पूजन कार्य,यज्ञ, हवन आदि में नारियल का विशेष महत्व है। हवन में नारियल चढ़ाया जाता है। प्रसाद के रूप में नारियल को बांटा जाता है।व खाया जाता है।
मान्यता ऐसा माना जाता है कि विष्णु भगवान अपने साथ माता लक्ष्मी, कामधेनु व नारियल को संसार में लेकर आए थे। नारियल के वृक्ष को कल्पवृक्ष भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि नारियल मनोकामना पूर्ति में सहयोग करता है।
पौराणिक कथा पौराणिक कथाओं के अनुसार इंद्रदेव से क्रोधित होकर महर्षि विश्वामित्र ने एक अलग ही स्वर्ग का निर्माण किया। उस स्वर्ग के निर्माण से जब वे संतुष्ट ना हुए,तो उन्होंने एक अलग ही पृथ्वी का निर्माण करने के विषय में सोचा। सबसे पहले उन्होंने मनुष्य रूप में नारियल की ही रचना की।अर्थात नारियल को मनुष्य रूप भी माना जा सकता है।
पूजन में महत्व पहले कर्मकांड व हवन आदि में बलि देने की प्रथा थी।बलि या तो स्वयं की या अपने किसी प्रिय की दी जाती थी। धीरे धीरे यह विधि परिवर्तित होकर पशु बलि देने तक ही सीमित हो गई ।बुद्धिजीवी व कर्मकांडी ब्राह्मणों के सहयोग से कालांतर में यह विधि नारियल रुपी मनुष्य के लिए उपयोग में लाई जाने लगी ।
कारण नारियल एक बीज फल है। स्त्री बीज रूप में ही संतान को जन्म देती है। इसलिए गर्भाधान सम्बंधी इच्छित मनोकामना पूरी करने में नारियल सक्षम होता है। और यही कारण है की स्त्रियों का नारियल को फोड़ना वर्जित होता है माना जाता है। यदि स्त्री नारियल तोड़ती है तो उसकी संतान को कष्ट आता है।
उपयोग नारियल को कल्पवृक्ष का फल भी माना जाता है क्योंकि नारियल अनेकों बीमारियों में औषधि के रूप में काम करता है। शक्ति वर्धक है और नारियल का उपयोग कई प्रकार से किया जा सकता है। नारियल के फल का, उसकी पत्तियों का और उसकी जटाओं तक का विभिन्न प्रकार से उपयोग होता है। इसलिए नारियल को हम बहुत पवित्र मानते हैं और नारियल का विशेष उपयोग पूजा पाठ में करते हैं।