जानिये रक्षाबंधन का शुभ मुहर्त और इसके पीछे की कथा
मुहूर्त | समय |
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शुभ काल | प्रातः 9:29 से 10:42 तक |
अभिजीत मुहूर्त | प्रातः 11:56 से दोप 12:50 तक |
शुभ चर | दोप 2:04 से शाम 3:45 तक |
लाभ बेला | शाम 3:45 से शाम 5:27तक |
अमृतवेला | शाम 5:27 से 7:08 तक |
शुभ चर | शाम 7:08 से 8:27 तक |
क्यों मनाया जाता है रक्षाबंधन, जानें पूरी कहानी
पुराणों में वर्णित कथा के हिसाब से दैत्य कुल के राजा बलि ने देवताओं के प्रमुख इंद्र का आसन पाने के लिए सौ यज्ञ करने का संकल्प लिया।
राजा बलि जब सौवां यज्ञ कर रहे थे तब इंद्रादि देवताओं की प्रार्थना पर स्वयं भगवान विष्णु ही वामन का रूप धर कर बलि की यज्ञशाला में आए। भगवान वामन ने राजा बलि से अपने लिए तीन पग भूमि मांगी। दैत्यगुरू शुक्राचार्य के मना करने पर भी बलि ने भगवान वामन को तीन पग भूमि दे दी।
वामन ने अपने शरीर को बढ़ा दो पगों में ही पृथ्वी व स्वर्ग को नाप लिया तथा तीसरा पग दैत्यराज बलि के मस्तक पर रखा। बलि की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान वामन ने बलि से वरदान मांगने को कहा तो बलि ने वरदान में भगवान विष्णु को अपने पाताललोक का द्वारपाल होना ही मांग लिया।
इस कारण भगवान विष्णु वैकुंठलोक छोड़कर पाताललोक में राजा बलि के द्वाररक्षक हो गए। भगवती लक्ष्मी अपने पति विष्णु को खोजने लगीं और खोजते हुए पाताललोक पहुंचीं तथा भगवान विष्णु को अपने साथ चलने के लिए कहने लगीं।
भगवान विष्णु ने बलि को दिए वरदान के अनुसार जाने से मना कर दिया। तब भगवती लक्ष्मी ने दैत्यराज बलि को अपना भाई बनाते हुए रक्षासूत्र बांधकर अपने पति को मांग लिया।
उस दिन श्रावणी पूर्णिमा का ही दिन था। बलि ने अपनी बहन लक्ष्मी की इच्छा का सम्मान करते हुए भगवान विष्णु को ससम्मान उनके साथ भेज दिया। तब से आज तक रक्षाबंधन का पवित्र पर्व चला आ रहा है।
आज अपने पुरोहित से रक्षासूत्र बंधवाना चाहिए। यदि भद्रा हो तो उसे टालकर सविधि ऋषियों का पूजन करने के बाद ब्राह्मण से पुरूषों को दाएं हाथ और महिलाओं को बाएं हाथ पर रक्षासूत्र बंधवाना चाहिए। रक्षासूत्र बांधते समय इस मंत्र का उच्चारण अनिवार्य रूप से करना चाहिए-
रक्षाबंधन के दिन सुबह उठकर स्नान करें ,साफ-सुथरे कपड़े पहने ,घर की साफ सफाई करें ,चावल के आटे का चौक पूरकर मिट्टी के छोटे से कलश की स्थापना करें ।चावल, कच्चे सूत का टुकड़ा, सरसों व रोली इनको एक साथ मिलाएं ।पूजा की थाली तैयार करें ।उसमें दीप जलाएं, थाली में मिठाई रखें और भाई को पीढ़े पर बैठायें। यदि पीढ़ा आम की लकड़ी का बना हो तो सर्वोत्तम है अन्यथा लकड़ी का ही होना चाहिए। ध्यान रखें भाई का मुंह पूरब दिशा की ओर होना चाहिए ।अब भाई के माथे पर टीका लगाकर, दाहिने हाथ पर रक्षा सूत्र बांधने राखी बांधकर ,भाई की आरती उतारे फिर उसको मिठाई खिलायें।
रक्षाबंधन का धार्मिक महत्व भी है। भाई बहनों के अलावा पुरोहित भी अपने यजमान को राखी बांधते हैं ।और राखी बांधकर एक-दूसरे के कल्याण व उन्नति की कामना करते हैं।
प्रकृति भी जीवन की रक्षक है इसलिए रक्षाबंधन के दिन कई स्थानों पर वृक्षों को भी राखी बांधी जाती है। ईश्वर संसार के रचयिता एवं पालन करने वाले हैं अतः इन्हें भी रक्षा सूत्र अवश्य बांधना चाहिए ।ब्राह्मणों या पौरोहित्य कर्म करने वालों के लिए भी रक्षाबंधन विशेष महत्व रखता है इस दिन ब्राह्मण अपना जनेऊ बदलते हैं।
यदि रक्षाबंधन के मुहूर्त की ज्योतिषीय विवेचना करी जाए तो आत्मा का कारक सूर्य इस दिन मन के कारक चंद्रमा की राशि में होता है और चंद्रमा आयुष कारक शनि की राशि में और दोनों एक दूसरे को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं। यद्यपि सूर्य अपनी राशि से द्वादश में होता है परंतु काल पुरुष की कुंडली के अनुसार राज योगों का निर्माण करता है ।इस स्थिति की आध्यात्मिक विवेचना करने पर पता लगता है कि मन और आत्मा एक दूसरे पर किस प्रकार निर्भर करते हैं यदि आत्मा प्रसन्न है तो मन भी प्रसन्न होगा। रक्षाबंधन में आत्मा की मुक्ति का मार्ग भी छुपा हुआ है ।जैसा हम जानते हैं हम जिन रिश्तों में बंधे हैं उनसे हमारे पूर्व जन्मों के संबंध अवश्य हैं । भाई-बहन का संबंध भी ऐसा ही है। भाई बहन बहुत करीबी रिश्ता होता है । इस दिन दोनों आत्माएं एक दूसरे के उत्थान के लिए वचनबद्ध होती हैं