धर्मनेहा श्री

जानिए होली के पहले आने वाली रंगभरी एकादशी या आमलकी एकादशी के बारे में

नेहा श्री

होली से 4/5 दिन पहले जो एकादशी होती है उसे रंगभरी एकादशी के रूप में मनाया जाता है।प्रत्येक माह में दो एकादशी होती हैं, यानी पूरे साल में 24 एकादशी होती हैं। एकादशी को भगवान विष्णु की पूजा का विशेष विधान है। हर एकादशी पर विशेष पूजन व विशेष प्रसाद का उपभोग किया जाता है। इस मौसम में आँवले का प्रयोग लाभदायक होता है।अतः भगवान विष्णु की पूजा व आँवले का प्रसाद महत्वपूर्ण भूमिका में रहता है।इस दिन आँवले के पेड़ की पूजा पाठ करने से व्यक्ति को सेहत और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

इस दिन भगवान शिव व माँ गौरा की पूजा का भी चलन है। इस दिन भोलेनाथ विवाह के पश्चात माँ गौरा का गौना कर कर कैलाश पर लाये थे। ऐसा माना जाता है कि वसंतऋतु में सम्पूर्ण सृष्टि ने रंगबिरंगे फूलों से दोनों का स्वागत किया था।

मुहूर्त एकादशी का मुहूर्त : हिंदू पंचाग के अनुसार रंगभरी एकादशी का आरंभ 13 मार्च सुबह 8 बजकर 44 मिनट से शुरू होकर 14 मार्च सुबह 10 बजकर 27 मिनट तक रहेगा। वहीं एकादशी में रवि सोम पुष्य का योग भी बन रहा है। पुष्य नक्षत्र रविवार 13 मार्च को शाम 6 बजकर 44 मिनट से सोमवार 14 मार्च रात 8:50 मिनट तक रहेगा।

मान्यता हिन्दू पंचांग के वर्तमान वर्ष में जिन घरों ,परिवारों में किसी की मृत्यु हुई होती है उन परिवारों में इस दिन विशेष रूप से अपनी विवाहिता पुत्री को बुलाया जाता है और शोक का समापन किया जाता है।शोक उठने या शोक समापन के बाद चैत्र मास से परिवार में शुभ कार्य करने की रोक हट जाती है

होलाष्टक

साल 2022 में होली का त्योहार 18 मार्च को मनाया जाएगा. होलीसे 8 दिन पहले होलाष्टक शुरू हो जाते हैं, जो कि होलिका दहन तक रहते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, होलाष्टक के दौरान कोई भी मांगलिक कार्य की मनाही होती है.

होलाष्टक 2022 से होंगे प्रारंभ

होलाष्टक फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ होते हैं और फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है. इस बार होलाष्टक 10 मार्च से लगेंगे. फाल्गुन मास की अष्टमी तिथि 10 मार्च को तड़के 02 बजकर 56 मिनट पर लग जाएगी. होलिका दहन 17 मार्च को होगा. इस दिन से ही होलाष्टक का अंत हो जाएगा.

मान्यता

मान्यता के अनुसार राजा हरिण्यकश्यप बेटे प्रहलाद को भगवान विष्णु की भक्ति से दूर करना चाहते थे. उन्होंने 8 दिन प्रहलाद को कठिन यातनाएं दी. इसके बाद आठवें दिन बहन होलिका के गोदी में प्रहलाद को बैठा कर जला दिया, लेकिन फिर भी भक्त प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ. इन आठ दिनों में प्रहलाद के साथ जो हुआ, उसके कारण होलाष्टक लगते हैं. वहीं नई शादी हुई लड़कियों को ससुराल की पहली होली देखने की मनाही भी होती है.

होलाष्टक में क्यों नहीं करने चाहिए मांगलिक कार्य

होलाष्टक को लेकर ऐसी मान्यता है कि फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा (Phalguna Purnima) तक 8 ग्रह उग्र रहते हैं. उग्र रहने वाले ग्रहों में सूर्य, चंद्रमा, शनि, शुक्र, गुरु, बुध, मंगल और राहु शामिल हैं. माना जाता है कि इन ग्रहों के उग्र रहने से मांगलिक कार्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. इसी वजह से मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं. आगे पढ़ें होलाष्ट में कौन-कौन से कार्य नहीं करने चाहिए.

होलाष्टक में नहीं करने चाहिए ये काम

कहा जाता है कि होलाष्टक में कभी भी विवाह, मुंडन, नामकरण, सगाई समेत 16 संस्कार नहीं करने चाहिए. इसके अलावा फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर पूर्णिमा के मध्य किसी भी दिन नए मकान का निर्माण कार्य प्रारंभ न कराएं और न ही गृह प्रवेश करें.

मान्यता के अनुसार, होलाष्टक के समय में नए मकान, वाहन, प्लॉट या दूसरे प्रॉपर्टी की खरीदारी से बचने की सलाह दी जाती है. होलाष्टक के समय में कोई भी यज्ञ, हवन आदि कार्यक्रम नहीं करना चाहिए. आप चाहें तो ये कार्य होली के बाद या उससे पहले कर सकते हैं.

pratyancha web desk

प्रत्यंचा दैनिक सांध्यकालीन समाचार पत्र हैं इसका प्रकाशन जबलपुर मध्य प्रदेश से होता हैं. समाचार पत्र 6 वर्षो से प्रकाशित हो रहा हैं , इसके कार्यकारी संपादक अमित द्विवेदी हैं .

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