
संकट मोचन बन राष्ट्र के प्रति समर्पित सशस्त्र बल
देश में कोरोना संक्रमण लगातार बढ़ रहा है। इस सकंट की घड़ी में अब भारतीय सेना देशवासियों के बचाव में आगे आई है। सेना अस्पताल बनाने लेकर विदेश से क्रायोजेनिक कंटेनर लाने में जुटी है। जब बाकी सब विफल हो जाते हैं, तो भारत के पास एक आखिरी रास्ता बचताहै-सशस्त्र बल, चाहे भूकंप हो, बाढ़ हो, ग्लेशियर का फटना हो, ट्रेन दुर्घटना हो या महामारी हो। नवीनतम रिपोर्ट में बताया गया है कि सेना की मेडिकल बटालियन को पूर्वोत्तर से बिहार में कोविड अस्पताल स्थापित करने के लिए एयरलिफ्ट किया गया है, क्योंकि वहां संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। यह गतिविधि अन्य सशस्त्र बल चिकित्सा सेवाओं द्वारा चलाए जा रहे अस्पतालों के अतिरिक्त है, जिन्हें अन्य संगठनों ने स्थापित किया है। इससे राज्यों की चिकित्सा सुविधाओं में वृद्धि हुई है। वह भी तब, जब इन बलों को बड़ी संख्या में बीमार अपने मौजूदा और सेवानिवृत्त कर्मियों के लिए कैटरिंग की भी व्यवस्था करनी पड़ रही है।
“ई-संजीवनी ओपीडी पर सेना के पूर्व डॉक्टरों द्वारा ऑनलाइन परामर्श सेवा” के लिए उपलब्ध होंगे

रक्षा सचिव डॉ. अजय कुमार, आईएएस और सशस्त्र बल चिकित्सा सेवा महानिदेशक (डीजीएएफएमएस) सर्जन वाइस एडमिरल रजत दत्ता, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम, पीएचएस, ने देश के आह्वान का जवाब देने के लिए आगे आने वाले सेना के पूर्व डॉक्टरों को संबोधित किया है। सेना के पूर्व डॉक्टर अब भारत के सभी नागरिकों के लिए “ई-संजीवनी ओपीडी पर सेना के पूर्व डॉक्टरों द्वारा ऑनलाइन परामर्श सेवा” के लिए उपलब्ध होंगे।
ई-संजीवनी ओपीडी भारत सरकार का प्रमुख टेलीमेडिसिन प्लेटफ़ॉर्म है जिसे सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ़ एडवांस कंप्यूटिंग (सी-डैक), मोहाली, भारत सरकार के तत्वावधान में विकसित किया गया है और यह बहुत अच्छी तरह से काम कर रहा है। यह प्लेटफॉर्म किसी भी भारतीय नागरिक को मुफ्त परामर्श प्रदान करता है। हालांकि, कोविड मामलों में वृद्धि के साथ, डॉक्टरों की मांग बढ़ रही है, लेकिन, डॉक्टरों के कोविड वॉर्ड की ड्यूटी से हट जाने के कारण डॉक्टरों की कमी हो गई है। ऐसी स्थिति में सेना के पूर्व डॉक्टर मदद करने के लिए आगे आ रहे हैं।
मुख्यालय एकीकृत रक्षा स्टाफ की चिकित्सा शाखा सेवारत और सेवानिवृत्त रक्षा कर्मियों के लिए टेलीमेडिसिन सेवा प्रदान करता है। चिकित्सा शाखा ने देश के सामान्य नागरिक रोगियों के लिए इस पूर्व-रक्षा ओपीडी को शुरू करने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और राष्ट्रीय सूचना केंद्र के साथ समन्वय किया है। आईडीएस मेडिकल के उपाध्यक्ष ने सेवानिवृत्त एएफएमएस डॉक्टरों की सभी सेवानिवृत्त बिरादरी से इस मंच से जुड़ने और संकट के इस समय में भारत के नागरिकों को बहुमूल्य परामर्श प्रदान करने का आग्रह किया है, जब देश कठिन समय से गुजर रहा है।
सेना के सेवानिवृत्त डॉक्टरों से अच्छी प्रतिक्रिया मिली है और जल्द ही इसमें सेना के कई सेवानिवृत्त डॉक्टरों के शामिल होने की उम्मीद है। इसके बाद, एक अलग राष्ट्रव्यापी सेना के पूर्व डॉक्टरों की ओपीडी की परिकल्पना की गई है। उनका विशाल अनुभव और विशेषज्ञता से देश के सामान्य नागरिक रोगियों को अपने घरों पर परामर्श प्राप्त करने और संकट से निपटने में मदद मिलेगी।
वर्तमान स्थिति को देखते हुए कहा जा सकता है कि सरकारी और निजी अस्पताल भारी दबाव में हैं। क्षमता से अधिक मरीज रहने के अतिरिक्त बहुत से हॉस्पिटल चिकित्सीय कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे हैं, क्योंकि बड़ी संख्या में वे पीड़ित हैं। देश की चिकित्सा इकाई इस लड़ाई को पूरी तत्परता व बहादुरी से लड़ रही है। अनेकों कमियों के बावजूद देश में एक भी चिकित्सा केंद्र बंद नहीं है। दुनिया भर से संकेत मिलने के बावजूद केंद्र और राज्य सरकारें देश को दूसरी लहर के लिए तैयार रहने में पूरी तरह सफल नहीं रहीं। जबकि कुछ राजनीतिक पार्टियां चुनाव और धार्मिक आयोजनों को लेकर ज्यादा चिंतित दिखाई दी। पहली लहर के बाद सरकार ने समय से पहले जीत की घोषणा कर दी, जिसके चलते आम आदमी लापरवाह हो गया और निर्धारिेत प्रोटोकॉल की अनदेखी करने लगा। सरल शब्दों में कहें, तो यह राष्ट्रीय स्तर पर सामूहिक विफलता थी।
चीन में उत्पन्न वायरस ने पूरे भारत में आतंक फैलाया है, जिसके परिणामस्वरूप अस्पताल के बिस्तर, जीवन रक्षक दवाइयों और सहायक प्रणालियों में कमी आई है। सेना ने आम लोगों को चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराने के लिए अपने अस्पतालों को भी आंशिक रूप से खोला है। इसके अलावा, दुनिया के विभिन्न हिस्सों से महामारी से लड़ने के लिए आवश्यक विशाल संसाधनों को लाने में वायु सेना और नौसेना को लगाया गया है। घरेलू स्तर पर वायु सेना और थल सेना संसाधनों को उन स्थानों पर पहुंचाती है, जहां जरूरत है। मौजूदा अस्पतालों का बोझ कम करने के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने अहमदाबाद, वाराणसी, लखनऊ और दिल्ली में अस्थायी अस्पताल स्थापित किए। ढांचा खड़ा हो गया, फर्नीचर भी आ गए, लेकिन बड़ी जीवन रक्षक सुविधाएं वहां नहीं हैं।