जबलपुरप्रत्यंचामध्य प्रदेश

क्या यह पत्रकारिता का भी ‘अंधा युग’ है?

अजय बोकिल

सच में इन दिनो मीडिया के बुरे दिन चल रहे हैं। जहां एक तरफ दिल्ली में 26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड के दौरान एक किसान की मौत की गलत रिपोर्टिंग के मामले में चर्चित पत्रकार राजदीप देसाई समेत 6 संपादको के ‍खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दायर हुआ है, वहीं दूसरी तरफ खुद मीडिया के भीतर टीआरपी और व्यक्तिगत विद्वेष की लड़ाई निचले स्तर तक पहुंच गई है। इसका ताजा उदाहरण है कि विवादित पत्रकार अर्णब गोस्वामी द्वारा अंग्रेजी न्यूज चैनल की एंकर नविका कुमार के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मामला दायर करना। अर्णब के चैनल रिपब्लिक टीवी एवं उसकी संचालक कंपनी एआरजी आउटलीयर मीडिया प्रा.लि.द्वारा दिल्ली की एक अदालत में नविका कुमार के ख़िलाफ़ मामला दायर करते हुए कहा गया है कि वे अर्णब गोस्वामी से जलती हैं, क्योंकि अर्णब ने ‘टाइम्स नाउ’ से अलग होकर अपना चैनल शुरू किया। एक साल में ही यह अग्रणी चैनल बन गया। लेकिन यह ‘अग्रणी’ कैसे बन गया, इसकी कहानी उस कथित व्हाट्स एप चैनल से भी खुलती है, जिसमें टीआरपी बढ़ाने के लिए घूसखोरी की बात कही गई है।कोर्ट में दायर याचिका के मुताबिक नविका ने टीआरपी घोटाला मामले में रिपब्लिक चैनल के प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी की सार्वजनिक हुई कथित वॉट्सऐप चैट को लेकर एक शो किया था। याचिकाकर्ता ने मांग की है कि खुद ही फैसला कर (मीडिया ट्रायल) कर चैनल को दोषी साबित करने की नविका कुमार को इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। मजे की बात है कि लगभग ऐसे ही आरोप अर्णब और उनके चैनल पर भी लगते रहे हैं कि वो ‘पूछता है भारत’ की आड़ में लोगों का ‘मीडिया ट्रायल’ करते रहते हैं। सुशांत रिया केस में तो बाॅलीवुड के चार संगठनों ने अर्णब के साथ नविका पर भी मीडिया ट्रायल करने के आरोप लगाए थे।बहरहाल, जो हो रहा है, उससे लगता है कि राजनीतिक दलों, टीवी चैनलों की टीआरपी रेटिंग और इसके लिए किए जाने वाले तमाम फर्जीवाड़ों की लड़ाई अब मीडिया एंकरों को सामने रखकर लड़ी जा रही है। टीआरपी के लिए देश के दो अंग्रेजी न्यूज चैनलों ‘रिपब्लिक भारत’ और ‘टाइम्स नाऊ’ की लड़ाई पर सतह पर आ गई है। इसमें भिड़ने वाले दोनो एंकर पत्रकार पुराने साथी भी हैं, लेकिन अब विरोधी खेमे में हैं। व्हाट्स एप चैट मामले में अदालत में जो आपराधिक मानहानि का प्रकरण दायर किया गया है, उसमें याचिका कर्ता ने कहा है कि इस चैट पर चर्चा कराने से नविका ने अर्णब गोस्वामी की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई है। महाराष्ट्र सरकार द्वारा रिपब्लिक मीडिया को सुनियोजित तरीके से बदनाम करने के लिए निशाना बनाया रहा है। नविका कुमार ने इसी योजना का हिस्सा बनकर अपने निजी कॉरपोरेट फायदे के लिए चैनल पर कीचड़ उछाला है। यह अलग बात है कि पिछले दिनो कई मामलों में रिपब्लिक भारत पर भी ऐसे ही आरोप लगे थे कि वह केवल भाजपा के राजनीतिक‍ हितों के अनुकूल रिपोर्टिंग करता है। सुशांत आत्महत्या (?) मामले ( जिसका सही कारण आज तक पता नहीं चला है) में महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार को कटघरे में खड़ा करने का काम ‘रिपब्लिक भारत’ ने बखूबी किया। जबकि उसकी बढ़ती टीआरपी का तोड़ ‘टाइम्स नाऊ’ ने ‘रिपब्लिक भारत’ को कथित रूप से बेनकाब करने के रूप में निकाला। उसके बाद बदले की कार्रवाई के रूप में महाराष्ट्र सरकार ने एक आर्किटेक्ट को आत्महत्या पर विवश करने के मामले में अर्णब को गिरफ्‍तार कर जेल भेज दिया। हालांकि अर्णब की गिरफ्तारी की तरीके का मीडिया में व्यापक‍ विरोध भी हुआ। अर्णब को सुप्रीम कोर्ट से ही जमानत मिल सकी।लेकिन अपने चैनल की टीआरपी फर्जी तरीके से बढ़वाने के लिए कथित रूप से रिश्वत देने से सम्बन्धित व्हाट्स एप चैट लीक होने के बाद अर्णब के नंबर उस खेमे में भी कम हो गए हैं, जो उसे अपना ‘हीरो’ मानता रहा है, क्योंकि इस चैट की वजह से खुद मोदी सरकार ही सवालों के घेरे में आ गई। इसी चैट में खुलासा हुआ था कि बालाकोट एयर स्ट्राइक समेत कई गोपनीय जानकारियां अर्णब के पास पहले से थीं। अगर ऐसा है तो यह सरकारी फैसलों की गोपनीयता में सेंध का मामला है। हालांकि सत्ता के बेहद नजदीक विचरने वाले पत्रकारों को कई अंदरूनी जानकारियां पहले से रहती हैं, लेकिन उनका उपयोग व्यावसायिक या निजी हितों के लिए करना पत्रकारीय एथिक्स के खिलाफ है।लेकिन इससे भी ज्यादा गंभीर मामला बार्क ( ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल इंडिया के पूर्व सीईओ पार्थो दासगुप्ता द्वारा मुंबई पुलिस को दिए उस लिखित बयान का है, जिसमें पार्थों ने कहा है कि टीआरपी से छेड़छाड़ करने के बदले रिपब्लिक चैनल के ‘एडिटर इन चीफ’ अर्णब गोस्वामी से उन्हें तीन सालों में दो फैमिली ट्रिप के लिए 12 हजार डॉलर और कुल चालीस लाख रुपए मिले थे। अगर यह सही है तो ‘रिपब्लिक भारत’ की टीआरपी अचानक बढ़ जाने का राज आसानी से समझ आ सकता है। हालांकि बाकी चैनल भी अपनी टीआरपी फर्जी तरीके से बढ़वाने के लिए ऐसे हथकंडे नहीं अपनाते होंगे, दावे से नहीं कहा जा सकता। अर्णब के खिलाफ यह मामला भी कोर्ट में हैं। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने जब यह खबर छापी तो ‘रिपब्लिक भारत’ ने उसे भी कानूनी नोटिस भेजकर आरोप लगाया कि अखबार ने ‘पत्रकारीय नैतिकता ( एथिक्स) का उल्लंघन किया है। साथ ही नसीहत भी दी ‍िक उसे टीआरपी घोटाले के मामले में ‘फर्जी’ खबरें छापने से बचना चाहिए।उधर गोपनीय व्हाट्स एप चैट मामले में रिपब्लिक भारत का आरोप है कि नविका कुमार ने अर्णब गोस्वामी पर राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने के तथ्यहीन आरोप लगाए हैं, जो बिल्कुल झूठे हैं। यह मामला कोर्ट में है। इसके बावजूद नविका ने 18 जनवरी को प्रसारित अपने कार्यक्रम में मुंबई पुलिस की चार्जशीट के दस्तावेजों का दुरूपयोग और उसका गलत मतलब निकालकर चैनल एवं अर्णब गोस्वामी को बदनाम किया है। जहां तक गलत रिपोर्टिंग की बात है तो किसान आंदोलन की ‘गलत रिपोर्टिंग’राजद्रोह है या यह नहीं, यह कोर्ट तय करेगी, लेकिन जहां तक राजदीप सरदेसाई जैसे सेलेब्रिटी एंकरों की रिपोर्टिंग की बात है तो मामले की तह में जाए बगैर एक किसान की हादसे में मौत को पुलिस की गोली हुई मौत बता देना पत्रकारिता और एंकरिंग की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान खड़े जरूर करता है। पत्रकार संगठनों ने राजदीप और अन्य संपादकों पर ‘राजद्रोह’ का मामला दर्ज करने की निंदा की है। लेकिन किसी से सुनी-सुनाई बात पर हादसे में मौत को पुलिस की गोली से मौत ठहरा देना और बाद में उसके लिए खेद जताना यही साबित करता है कि अब पत्रकारिता में अपने आग्रहों और सुविधा के ‍िहसाब से निष्कर्ष पहले निकाल लेने और तथ्यों की पुष्टि बाद में करने का चलन बढ़ता जा रहा है। यह अपने पूर्वाग्रहों के साथ साथ टीआरपी के लिए भी किया जा रहा है। दरअसल यह नए जमाने की नई पत्रकारिता है, जहां एजेंडे को ही खबर के स्वरूप में परोसा जा रहा है और उसे ही सही ठहराने की ‍कोशिश की जा रही है। जबकि पत्रकारीय मूल्यों का तकाजा यही था कि राजदीप को यह रिपोर्ट करना था कि हादसे में ‍िकसान की मौत हुई है, लेकिन कैसे और किस कारण से हुई है, इसकी पुष्टि होनी है।यहां असल सवाल यही है कि मीडिया ट्रायल ( यानी कानूनी रूप से आरोप सिद्ध होने के पहले ही मीडिया द्वारा उसे दोषी ठहरा देना) अगर किसी पत्रकार के मामले में गलत है तो बाकी के मामले में वह सही कैसे है? इसमें धूर्तता यह है कि अगर ( केन्द्र व राज्य दोनो में) सत्तारूढ़ दल को लाभ पहुंचाने वाला कोई मीडिया ट्रायल किसी चैनल पर चलाया जाता है तो वह ‘निर्भीक पत्रकारिता’ है तौर सत्तारूढ़ दल के हितों को नुकसान पहुंचाता है तो वह ‘प्रायोजित’ और ‘बिकी हुई’ पत्रकारिता है।कुल मिलाकर कहानी यह है कि दूसरों को नैतिकता और निष्पक्षता का पाठ पढ़ाने वालों के पैर ही कीचड़ में धंसे हुए हैं। लेकिन जो ज्यादा जोर से झूठ बोल सकता है, वह सच्चाई का पुतला मान लिया जाता है। अगर बार्क के पूर्व सीईअो पार्थो का बयान सही है तो टीआरपी फजीवाड़े की और पोलें खुलेंगी। मीडिया के और कपड़े उतरेंगे। दरअसल खबरों के कारोबार, सही खबर पेश करना, खबरों के पीछे की खबर देना, खबरों के आगे की खबर देना और जो हर किसी को पता है, उसे भी ‘चौंकाने वाले खुलासे’ के रूप में पेश करना टीआरपी अथवा हिट्स प्रतिस्पर्द्धा की मेराथन जीतने के टोटके तो हो सकते हैं, लेकिन आम दर्शक या पाठक की नजर में ज्यादा दिन धूल नहीं झोंकी जा सकती। आज मीडिया जगत की सबसे बड़ी नकारात्मक ब्रेकिंग न्यूज यही है कि अब निष्पक्ष रहना और निष्पक्ष खबर देना लगभग असंभव है। ऐसा करेंगे तो आप चंद दर्शको/पाठकों की निगाह में भले चढ़ जाएं, राजनीति और पैसे की रेस से बाहर कर ‍दिए जाएंगे। कई लोग अर्णब की पत्रकारिता को ‘वल्चर जर्नलिज्म’(गिद्ध पत्रकारिता) भी कहते हैं, लेकिन बाकी भी ‘कल्चर जर्नलिज्म ( सुसंस्कृत पत्रकारिता) कर रहे हैं, ऐसा नहीं है। इस मायने में यह पत्रकारिता का भी ‘अंधायुग’ ही है।

pratyancha web desk

प्रत्यंचा दैनिक सांध्यकालीन समाचार पत्र हैं इसका प्रकाशन जबलपुर मध्य प्रदेश से होता हैं. समाचार पत्र 6 वर्षो से प्रकाशित हो रहा हैं , इसके कार्यकारी संपादक अमित द्विवेदी हैं .

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Close
%d bloggers like this: