लाइफस्‍टाइल

भारतीय शिक्षा पद्धति

ज्योतिषाचार्य नेहा श्री

आज बात करते हैं भारतीय शिक्षा पद्धति की। भारतीय शिक्षा पद्धति के अनुसार 12वीं में उत्तीर्ण बालकों के अभिभावकों ने अपनी उल्लास भरी फोटो सोशल मीडिया पर डाली। अधिकांश बच्चे 90 से अधिक प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण हुए थे,उनको अनेकों शुभकामनाएं।

यहां पर ज्योतिषीय विवेचना का विषय यह है कि क्या इन अंको का उनके आने वाले व्यावसायिक जीवन में प्रभाव पड़ेगा और सामाजिक विवेचना का विषय यह है कि जिन बालकों के 90% से कम अंक आए हैं, वे जीवन की दौड़ में अनुत्तीर्ण तो नहीं रह जाएंगे। भारतीय शिक्षा प्रणाली का आधार सभी बालकों को एक समान मानकर चलना है। हर जीव में अपनी व्यक्तिगत विशेषताएं होती हैं ।इस कारण उनके उत्तीर्ण होने का एक ही आधार मान लेना उचित नहीं है ,जैसे तैरने की परीक्षा में मछली उत्तीर्ण हो सकती है और गिलहरी अनुत्तीर्ण और पेड़ पर चढ़ने की परीक्षा में बंदर उत्तीर्ण होगा और हाथी तो सोच भी नहीं पाएगा परीक्षा में बैठने के विषय में। भारतीय शिक्षा प्रणाली भी ऐसी ही हो चली है 12वीं तक जो विषय पढ़ाये जा रहे हैं व्यवसायिक जीवन में उनका कितना महत्व है यह कहना बहुत कठिन है ।प्रायः देखा जाता है कि व्यक्ति ने जो व्यवसायिक शिक्षा ली है उससे इतर व्यवसाय चुना है जैसे बहुत से इंजीनियर दुकान खोल कर बैठे है अंको पर आधारित शिक्षा डिग्री अवश्य दिला सकती है ,परंतु एक अच्छी डिग्री एक अच्छी व्यवसाय का मानक हो ऐसा आवश्यक नहीं है यहां पर एक सुपरहिट पिक्चर 3 Idiots का उदाहरण लिया जा सकता है अतः जो छात्र कम अंकों से उत्तीर्ण हुए बालक हैं उनको निराश होने की आवश्यकता नहीं है ।ज्योतिष के अनुसार यदि व्यक्ति के पंचम भाव का संबंध दशम भाव से बन जाता है तो मनुष्य ऐसा व्यवसाय चुनता है जिसकी उसने शिक्षा प्राप्त करी है। यदि दशा अंतर्दशा का संबंध दशम भाव से तो बनता है परंतु पंचम भाव से नहीं बन पाता तो फिर व्यक्ति ऐसा व्यवसाय चुनता है जिसकी उसने शिक्षा नहीं ली होती। अतः यह मानकर चलना कि अंक नहीं आए तो अब व्यवसाय नहीं होगा, निरर्थक है। दशम भाव दशमेश और दशम का कारक जिस भाव से तथा जिस ग्रह से संबंध बनाता है उस क्षेत्र में व्यक्ति का व्यवसाय बनता है ।बहुत से व्यक्तियों के एक से अधिक व्यवसाय बनते हैं इसके लिए संपूर्ण ज्योतिषीय विवेचना की आवश्यकता होती है, लेकिन केवल अंको को जीवन की विजय का आधार बना लेना सर्वथा निरर्थक है। अंत में ईश्वर पर विश्वास कि यदि उसने जीवन दिया है तो जीवन यापन के साधन भी देगा अवश्य रखना होगा।

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