कहो तो कह दूँप्रत्यंचा

“प्रेस” और “पुलिस” किसी के सगे नहीं तो “नेता”कौन से सगे हैं ?

चैतन्य भट्ट

भारतीय जनता पार्टी मध्यप्रदेश के प्रभारी “मुरलीधर राव” ने अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को गुरु मंत्र देते हुए बताया कि “प्रेस” और “पुलिस” किसी के सगे नहीं होते, वैसे ये बात कही तो उन्होंने सही ही है, अब अपनी पुलिस को ही देख लो कल तक जिसकी सत्ता होती है उसकी जी हुजूरी में लगी रहती है और जैसे ही सत्ता पलटती है उनको गिरफ्तार करने, उन पर मुकदमे लगाने में पीछे नहीं हटती, ये तो उसका स्वभाव है, जिसकी सत्ता होती है वो उसकी चरण वंदना करती है कल तक जिसके आगे पीछे सलाम ठोकती थी आज उन पर लठ्ठ चलाने में एक मिनिट भी नहीं लगाती , अब वो भी बेचारी करे भी तो क्या करे ? उसे भी तो अपनी नौकरी बचाना है, अपने बाल बच्चों का पेट पालना है, यदि ऐसा नहीं करेगी तो परिवार कैसे चलेगा’? अब रहा प्रेस का सवाल तो प्रेस का तो सीधा सिद्धांत ही है जो विज्ञापन देगा उसकी वाहवाही होगी जो नहीं देगा उसकी ऐसी तैसी करने में प्रेस कभी पीछे नहीं हटेगा , लेकिन उसकी भी तो मजबूरी है चैनल चलाना है, अखबार निकालना है इन सबमें लगता है पैसा, और पैसा नहीं आएगा तो क्या ख़ाक अखबार निकाल लोगे ? मुरलीधर जी की बात से मैं पूरी तरह सहमत हूं लेकिन हुजूर ये भी तो बता दो कि “नेता” किसके सगे होते हैं जिस पार्टी में बरसों रहे, जिसके दम पर मलाई काटी, माल काटा, करोड़पति बने उसको एक ही झटके में छोड़कर दूसरी पार्टी में आने में वे एक मिनिट भी नहीं लगाते और ऐसे नेताओं का तो आजकल आपकी पार्टी में खासा बोलबाला हैं बेचारे वो खांटी कार्यकर्ता और नेता जो बरसों से पार्टी का “दरी फट्टा” उठा रहे हैं, नेताओं की जयजयकार कर रहे है वे आज भी किसी कोने में खड़े होकर टेंट वाले से हिसाब किताब कर रहे हैं और दूसरी पार्टी के आयातित लोग मंत्री बनकर गाड़ी, बंगला, नौकर, चाकर का सुख भोग रहे हैं l ये तो कलियुग है यंहा कब कौन किसका सगा बन जाए और कब सौतैला कहना मुश्किल है, इसलिए तो ये गाना बना है “कोई होता जिसको हम अपना कह लेते यारो पास नहीं तो दूर ही होता लेकिन कोई मेरा अपना” आजकल तो प्रेमी प्रेमिका का सगा नहीं होता, दोस्त दोस्त का सगा नहीं होता इसलिए राजकपूर फिल्म संगम में तान छेड़ रहे थे “दोस्त दोस्त न रहा प्यार प्यार न रहा” इधर किशोर कुमार फिल्म झुमरू में गाये पड़े थे “कोई हमदम न रहा, कोई सहारा न रहा हम किसी के न रहे कोई हमारा न रहा”। नेताओं के बारे में तो ये कहा जाता है कि जब उन्हें वोट लेना होता है तो चरणों में लोट जाते है और जीतने के बाद मतदाता के पास ये गाना गाने के अलावा कोई चारा नहीं रहता “अगर बेवफा तुझको पहचान जाते खुदा की कसम हम तुझे वोट न देते” इस कलियुग में तो बच्चे भी मां बाप के सगे नहीं होते , देखना है तो वृद्धाश्रम में जाकर देख आओ नेताजीl अकेले प्रेस और पुलिस को कोसने का कोई फायदा नहीं है, आजकल कोई किसी का ,सगा नहीं है सबके अपने अपने स्वार्थ है इसलिए फिल्म “उपकार” का ये गीत वर्तमान में सबसे ज्यादा मौजूँ है

“कस्मे वादे प्यार वफ़ा सब, बातें हैं बातों का क्या, कोई किसी का नहीं ये झूठे, नाते हैं नातों का क्या”

दस किलो आम बेचकर कर्जा तो चुका देते

कुछ दिनों पहले जबलपुर में उगाये जाने वाले एक “जापानी” किसिम के आम की बड़ी चर्चा हो रही थीl कोई उसका रेट “तीन लाख रुपया” किलो बतला रहा था तो कोई उसे “ढाई लाख रुपए” किलो में खरीदने तैयार था, तो किसी ने एक आम की बोली “पचास हजार” तक लगा दी थी l सोशल मीडिया से लेकर अख़बारों में, टीवी चैनलों में इस आम और उसको उगाने वाले भाई साहेब के इंटरवयू चल रहे थे, लोगों को भी उस “बहुमूल्य” आम को देखने की बड़ी उत्कंठा सी जाग गए कुछ लोग सशरीर उस आम को देखने पंहुच गए तो किसी ने अखबार में, टीवी में उसके दर्शन कर अपने आपको धन्य मान लिया l जापान के इस आम को उगाने वाले ने बताया कि उसने इन आमों की रखवाली के लिए शिकारी कुत्ते और कई गार्ड रखे हैं क्योंकि अगर दो आम भी चोरी चले गए तो कम से कम एकाध लाख की दच्च तो लगना ही है और यदि एकाध किलो आम किसी ने चुरा लिए तो उस चोर को लखपति बनने से कोई रोक नहीं सकता इधर आम का बगीचा लगाने वाले लोगों को उन भाई साहेब से ईर्ष्या होने लगी कि देखो केवल “जापानी आम” का पेड़ लगाकर वो कैसे करोड़पति बन रहा है और इधर हम लोग लंगड़ा, चौसा, दशहरी, फजली, नागिन, बादाम और देसी आम उगा कर उन्हें चालीस रुपैया किलो बेच रहे हैं l लोगो का खून जला जा रहा था उस आम को और उस आम को उगाने वाले भाई साहेब को देखकर, लेकिन हाल ही में पता चला है कि जिनके आमों की कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तीन लाख रुपए किलो है उन पर “सत्रह लाख” का “बैंक ऑफ़ बड़ोदा” का कर्जा चढ़ा हुआ है तीन साल हो गए है वे कर्जा नहीं चुका पा रहे है अंत में बैंक वालों ने “डेब्ट रिकवरी ट्रिब्यूनल जबलपुर” में अपील कर दी है और भाईसाहब को ट्रिब्यूनल ने नोटिस जारी करके उनकी सम्पत्तियों को बेचने पर रोक लगा दी है पर अपना सोचना है सम्पत्तियों पर रोक लगी है आमों को बेचने पर तो नहीं, तोड़ लें चार छह किलो आम पेड़ पर से और बेचकर पैसा मुंह पर मार दें बैंक के जिसके पास आम रुपी ऐसा “कुबेर का खजाना” हो उसको कुल जमा सत्रह लाख के लिए नोटिस, घोर अनर्थ है ये, और इसका जवाब भाई साहेब को दे देना चाहिए l

सुपर हिट ऑफ़ द वीक

एक अमीर आदमी ने श्रीमान जी पर रौब झाड़ते हुए कहा

“अगर मै अपनी कार से सुबह निकलूं तो शाम तक अपनी आधी प्रापर्टी भी नहीं देख सकता”

“पहले हमारे पास भी ऐसी ही खटारा कार थी, बेच दी” श्रीमान जी का उत्तर था

pratyancha web desk

प्रत्यंचा दैनिक सांध्यकालीन समाचार पत्र हैं इसका प्रकाशन जबलपुर मध्य प्रदेश से होता हैं. समाचार पत्र 6 वर्षो से प्रकाशित हो रहा हैं , इसके कार्यकारी संपादक अमित द्विवेदी हैं .

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