कहो तो कह दूँप्रत्यंचा

कहो तो कह दूँ – रजाई देखकर डर लगता है कंही ‘लू’ न लग जाए:चैतन्य भट्ट

‘दिल ने फिर याद किया’ फिल्म का एक बड़ा मशहूर गाना था जिसमें अंतरा था ‘वो भी क्या दिन थे हमें दिल में बिठाया था कभी’ उसी गाने की तर्ज पर आजकल लोग बाग़ ठण्ड का इन्तजार करते करते गा रहे हैं ‘वो भी क्या दिन थे जब हम दांत किटकिटाए करते थे और रजाई में लिपटकर भजिये पकोड़े खाया करते थे कभी’ l

सचमुच अब उन दिनों की याद ही बाकी रह गयी है इस साल ठण्ड को पता नहीं क्या नाराजगी हो गयी है अपन लोगों से कि दिसम्बर का आधा महीना बीत गया है पर ‘बाई’ का दूर दूर तक पता नहीं है, पुराने दिनों की याद कर कर के ठण्ड का मजा आखिर कब तक लें समझ से बाहर है, हमने तो ये सुना था और पढ़ा भी था कि साल भर में तीन मौसम आते है ठण्ड गर्मी और बरसात और चारो के हिस्से में चार चार महीने आते हैं पर यंहा तो लगता है कि ठण्ड के चार महीने भी गर्मी ने ही चुरा लिए है, सोचते है वो भी क्या दिन थे जब हम चार चार दिन तक नहीं नहाते थे बस गरम पानी से मुंह धोकर बाथरूम से बाहर आ जाया करते थे पर आज दिन में दो दो बार नहाना पड़ रहा है याद आती है वो ‘रजाई’ जिसमें लिपट कर टांगों को पेट में लगाकर सिकुड़ कर सोते थे आज रजाई को देखकर डर सा लगता है कि इसे ओढ़ लिया तो ‘लू’ न लग जाएl शदियों में जाते थे तो बेहतरीन सूट और टाई लगाकर बन ठन कर जाते थे लेकिन आज ये हालत है सूती कपडे की “शर्ट” और कुर्ता पायजामा पहन कर शादी ब्याह में शिरकत करना पड़ रही है दूल्हा भी सूट पहने जरूर है परन्तु अंदर एक पाँव ‘ डियो’ डालकर बैठा है ताकि पसीने की बदबू से कंही नई नवेली दुल्हन बिदक न जाए, अपने को तो लगता है कि ठण्ड को भी तो कंही “कोरोना संक्रमण” नहीं हो गया है इसलिये वो भी ‘क्वारंटाइन’ हो गई है या फिर यहां का रुट भूल गई है या फिर नाराज होकर कंही चली गयी है अपनी सोच तो ये है कि अख़बारों में एक विज्ञापन जारी करवा दें जो इस तरह का हो l

प्रिय ठण्ड तुम हम लोगों से रूठ कर कहां चली गयी हो हमारा तुम्हारा रिश्ता तो जन्म जन्मांतर का है अपनों से कोई ऐसे रूठता है क्या भला तुम जंहा भी हो वंहा से पहली गाडी पकड़ कर सीधी यहां आ जाओ तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा । तुम्हारे अभाव में बेचारे गरम कपडे बेचने वाले कितने उदास हैं एक ‘हाफ स्वेटर’ भी नहीं बिक पा रही है ‘जर्सी’ ‘कोट’ और’ फुल स्वेटर’ की तो बात ही छोड़ दो, ऐसे अपने से कोई नाराज होता है क्या आ जाओ ले दे के एक महीना ही बचा है तुम्हारे पास अगले महीने तो जैसे ही ‘मकर संक्रांति’ आईं तो तुम्हारा बोरिया बिस्तर बांध जाएगा जितने दिन बचे है है उतने दिन के लिए ही आ जाओ हम सब तुम्हारा बेसब्री से इन्तजार कर रहे है अब और न तड़फाओ बस आ ही जाओ l
शिव का रौद्र रूप
अपने मामाजी यानि प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज जी को हम बडा शांत स्वाभाव का मानते आये थे पिछले पंद्रह सालों में भी उन्होंने अपना ऐसा रौद्र रूप कभी नहीं दिखाया था जो वे अब दिखा रहे है सारे प्रदेश के अफसर जो कभी मामाजी को के आदेशों को हंसी में उड़ा देते थे वे अब थर थर काँप रहे हैं मंत्री जो मामाजी जी को कुछ समझते ही नहीं थे दिन रात अपने विभाग के बारे में ‘फीड बेक’ ले रहे हैं क्योंकि हर महीने उन्हें मामाजी के सामने अपने अपने विभाग की रिपोर्ट जो देनी है मंत्री अफ़सरों को कस रहे है और अफसर अपने ‘सब ऑर्डिनेट’ पर चाबुक चला रहे हैं सारे प्रदेश में माफिया के खिलाफ मामाजी की ‘तीसरीआँख’ खुल चुकी हैऔर अफसरों को उन तमाम माफियाओं के खिलाफ कार्यवाही करना पड़ रही है जिसके साथ उनके याराना ताल्लुकात थे लोग बाग़ समझ नहीं पा रहे हैं कि एकाएक मामाजी जी को ये क्या हो गया मामाजी आप ऐसे तो न थे कितने प्यार से अफसरों से बात करते थे पर अचानक क्या हो गया लगता है मामाजी ने अपना भोला और शांत स्वभाव किसी कोने में रख कर ‘तांडव’ शुरू कर दिया है कहते है न भोलेनाथ यानि भगवान शिव को जब क्रोध आता था तो वे ‘तांडव नृत्य’ शुरू कर देते थे वैसा ही तांडव मामाजी कर रहे है और उस से उन तमाम लोगों को अब तकलीफ होने लगी है जो अपराधी थे, माफिया थे, तस्कर थे, ड्रगमाफ़िया थे, सरकारी जमीनों पर कब्जा करते थे पर मामाजी एक गुजारिश हमारी भी है कि रेत माफिया पर आपके इस ‘डांस’ का कोई असर दिखाई नहीं दे रहा है नर्मदा की छाती चीर चीर कर रेत का अवैध खनन जारी है अपनी तीसरी आँख जरा उस तरफ मोड़ दो मामाजी
सुपर हिट ऑफ़ द वीक

श्रीमती जी ने बातों ही बातों में उनका वायदा याद दिलाने के लिए श्रीमान जी से कहा ‘

अजी सुनते हो आज मैंने ख्वाब देखा कि आप मेरे लिए ‘फर’ का कोट लाये हो

“बहुत खूब, अगली बार जब ख्वाब आये तो उसे पहन भी लेना’ श्रीमान जी का उत्तर था

pratyancha web desk

प्रत्यंचा दैनिक सांध्यकालीन समाचार पत्र हैं इसका प्रकाशन जबलपुर मध्य प्रदेश से होता हैं. समाचार पत्र 6 वर्षो से प्रकाशित हो रहा हैं , इसके कार्यकारी संपादक अमित द्विवेदी हैं .

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