

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई
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अनुभव अवस्थी
अटल बिहारी वाजपेई जी का जन्म दिवस आज समूचा भारत सुशासन दिवस के रूप में मना रहा हैं
राष्ट्रीय हिंदी कवि, पत्रकार व एक प्रखर वक्ता , वे भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में एक, चार दशकों तक भारतीय संसद के सदस्य, लोकसभा, निचले सदन, दस बार, और दो बार राज्य सभा, ऊपरी सदन, अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन का संकल्प लेकर प्रारंभ करने वाले, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के पहले प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने गैर काँग्रेसी प्रधानमंत्री पद के 5 वर्ष बिना किसी समस्या के पूरे करने वाले मृदुभाषी राजनीति में सर्वदलीय पसंद किए जाने वाले अटल बिहारी बाजपेई जी का आज समूचा भारत सुशासन दिवस के रूप में जन्म दिवस मना रहा है ।
उत्तर प्रदेश में आगरा जनपद के प्राचीन स्थान बटेश्वर के मूल निवासी पण्डित कृष्ण बिहारी बाजपेई मध्य प्रदेश की ग्वालियर रियासत में अध्यापक थे। वहीं शिन्दे की छावनी में 25 दिसंबर 1924 को उनकी सहधर्मिणी कृष्णा बाजपेई की कोख से अटल बिहारी बाजपेई जी का जन्म हुआ था। अटल बिहारी बाजपेई जी की स्नातक तक की शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया कालेज (वर्तमान में लक्ष्मीबाई कालेज) में हुई। उसके उपरांत कानपुर के डीएवी कॉलेज से राजनीति शास्त्र में एम॰ए॰ की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। और फिर संघ से प्रेरित होकर डॉ॰ श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के निर्देशन में राजनीति का पाठ पढ़ा।
राजनीति में, सन् 1957 में बलरामपुर (जिला गोण्डा, उत्तर प्रदेश) से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा में पदार्पण किया। इससे पहले 1952 के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था । सन् 1957 से 1977 तक जनता पार्टी की स्थापना तक वे बीस वर्ष तक लगातार जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे। 1975 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा इमरजेंसी लगाए जाने के बाद कई विपक्षी दल जनता पार्टी के झंडे तले एकजुट हुए। जनसंघ का भी जनता पार्टी में विलय हो गया। 1977 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी को जनता पार्टी ने सत्ता से बाहर कर दिया। लेकिन जनता पार्टी की एका ज्यादा दिन नहीं चली। 1980 में जनसंघ का धड़ा जनता पार्टी से अलग हो गया। छह अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी की नींव पड़ी। अटल बिहारी बाजपेई जी इसके पहले अध्यक्ष बने। मोरारजी देसाई की सरकार में सन् 1977 से 1979 तक विदेश मन्त्री रहे और विदेशों में भारत की छवि बनायी।ऐसा कहा जाता है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और जनता पार्टी की दोहरी सदस्यता के सवाल पर जब समाजवादियों ने मोरारजी सरकार को गिराया दिया । उसके बाद जनसंघ से अलग होकर 6अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की । साल के अंत में भारतीय जनता पार्टी ने गांधीवादी समाजवाद के फलसफे को स्वीकार किया और अपने आपको जनसंघ से अलग पार्टी की तरह पेश किया। मुंबई में इसका पहला अधिवेशन हुआ। जिसकी अध्यक्षता अटल बिहारी बाजपेई ने की । बाजपेई ही 1980 से 1986 तक भाजपा के अध्यक्ष रहे । पार्टी ने पहला लोक सभा चुनाव 1984 में कमल के फूल चुनाव चिह्न के साथ लड़ा था। अपने पहले आम चुनाव में पार्टी ने महज दो सीटें जीती थीं। एक आंध्र प्रदेश में और दूसरी गुजरात में। भाजपा ने देश के 20 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कुल 224 प्रत्याशी खड़े किए थे। जिसमें स्वयं पार्टी के अध्यक्ष पद पर आसीन अटल बिहारी बाजपेईमध्य प्रदेश के ग्वालियर से चुनाव लड़े, लेकिन कांग्रेस के माधवराव सिंधिया से हार गए। सिंधिया को 30,7735 वोट मिले थे जबकि अटल जी को 132141 वोट। उनके खिलाफ अचानक कांग्रेस ने माधवराव सिंधिया को खड़ा कर दिया। जबकि माधवराव सिंधिया गुना संसदीय क्षेत्र से चुनकर आते थे। सिंधिया से बाजपेई जी को करारी हार का सामना करना पड़ा था।इसके बाद बाजपेई जी ने 1991 के आम चुनाव में लखनऊ और मध्य प्रदेश की विदिशा सीट से चुनाव लड़े और दोनों ही जगह से जीते। बाद में उन्होंने विदिशा सीट छोड़ दी । इस चुनाव के साथ ही भारतीय जनता पार्टी एक नई पहचान के साथ उभर कर सामने आई, और अपने सासंदों की संख्या बल में वृद्धि की ।उसके बाद से कमल की हल्की लहर दौड़ गई और 1996 में ग्यारहवीं लोकसभा के लिए चुनाव हुए। चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। पर भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और राष्ट्रपति ने अटल बिहारी वाजपेई को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। अटल बिहारी वाजपेई ने 16 मई को प्रधानमंत्री का पद संभाला लेकिन, 13 दिन ही प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठ पाए और बहुमत साबित न कर पाने की वजह से इस्तीफा देना पड़ा। अपने उस भाषण में अटल ने जी ने कहा था कि लोकतंत्र में संख्या बल का महत्व बहुत ज्यादा है और मेरे पास संख्याबल नहीं है इसलिए हम संख्याबल के आगे मस्तक झुकाते हैं और मैं इस्तीफा देने राष्ट्रपति के पास जा रहा हूं।1996 में ही सरकार के पांच साल के कार्यकाल पूरे होने के बाद चुनाव हुए थे लेकिन 1998 में फिर से चुनाव की स्थिति बन गई। इन दो सालों के दौरान तीन बार प्रधानमंत्री बदले ऐसे में राजनीति में स्थिरता नहीं आ सकी। 1998 में NDA गठबंधन से अटल बिहारी बाजपेई प्रधानमंत्री बने थे लेकिन 13 महीने में ही सरकार गिर गई। बीजेपी सरकार के पक्ष में 269 वोट पड़े थे और विरोध में 270 वोट पड़े थे। इसलिए गिरधर गोमांग की भूमिका आज भी चर्चा का विषय है। सदन में विश्वास मत न साबित कर पाने की वजह से कुछ महीने बाद ही तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने संसद भंग कर दी लेकिन बाजपेई जी कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने रहे। अक्तूबर 1999 भाजपा के लिए काफी शुभ रहा और वाजपेई जी का करिश्मा इस बार भी चमत्कार करने में कामयाब रहा और वह फिर से राष्ट्रीय लोकतांत्रिक सरकार एनडीए के प्रधानमंत्री बने। इस बार उनकी सरकार ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया और स्वतंत्रता सेनानी से शुरू होकर एक पत्रकार, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता, संसद सदस्य, विदेश मंत्री, विपक्षी नेता तक का उनका राजनीतिक कैरियर एक ऐसे मोड़ पर आकर इतने गरिमामय तरीके से संपन्न हुआ कि बाजपेई जी जन जन के प्रिय बन गए