मुगलों का महिमामंडन राष्ट्रद्रोह :सिद्धार्थ शंकर गौतम


हाल ही में स्ट्रीमिंग एप हॉटस्टार पर एक नई वेबसीरीज ‘दी एम्पायर’ का प्रसारण हुआ है जिसमें प्रथम मुग़ल बादशाह बाबर की कहानी है। आठ एपिसोड की इस वेबसीरीज पर आरोप है कि इसने बाबर का महिमामंडन किया है। मैंने स्वयं यह सीरीज देखी और मैं कह सकता हूँ कि इसके माध्यम से बाबर के जीवन के संघर्षों को महान बताकर उसका महिमामंडन हुआ है। किन्तु गौर से देखें तो उक्त सीरीज से बाबर कितना झूठा, मक्कार, हारा और थका हुआ इंसान था इसका भी चित्रण होता है। सीरीज के अनुसार बाबर की दादी दौलत बेगम ने अपने पुत्र यानि बाबर के पिता उमर शेख़ मिर्ज़ा की हत्या की। पूरे जीवन बाबर फरजाना (जो उसका मूल निवास था) का शासक नहीं बन सका। समरकंद उसे उसकी बहन खानज़दा की शैबानी खान से बेवफ़ाई के कारण मिला। फ़ारस के शाह को उसने धोखा दिया। उसके स्वयं के मित्र ने भी उसे धोखा दिया। काबुल उसने राजनीतिक निकाह के बाद हासिल किया और अपनी दूसरी पत्नी को सदा दुखी करता रहा। उसकी स्वयं की तीन संतानें आपस में बादशाहत के लिये लड़ती रहीं। पानीपत के युद्ध में इब्राहिम लोधी से क़िस्मत से जीता। कुल मिलाकर उसका जीवन ही धोखा और षड्यंत्र था। हाँ, लेकिन यह सब आपको तभी दिखेगा जब आप मुगलों को हत्यारा मानें अन्यथा तो पूरी वेबसीरीज ही बाबर को महान बनाने में बना दी गई है। खासकर अंत में तो उसे एक रहमदिल बादशाह, ईमान पर चलने वाला मुसलमान, समभाव रखने वाला पिता और पहली पत्नी से सच्चा प्रेम करने वाले व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यहाँ सवाल उठता है कि क्या सच में बाबर इतना महान था कि उसके चित्रण हेतु पूरी वेबसीरीज बना दी जाए? क्या बाबर सच में रहमदिल बादशाह था? क्या बाबर एक पिता के रूप में असफल नहीं हुआ जहाँ उसके बेटे ही सल्तनत के लिए लड़ने लगे? क्या उसकी इब्राहिम लोधी पर जीत इतनी कमजोर थी कि उसकी मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारी हुंमायू को भारत छोड़ना पड़ा था? आखिर हमारे देश के फिल्मकार मुगलों को महान दिखाकर क्या साबित करना चाहते हैं?
बाबर के समकालीन गुरु नानक देव जी ने बाबर का चरित्र चित्रण ‘बाबरवाणी’ में किया है। दरअसल, जब 1526 में बाबर ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराकर मुगल वंश की नींव रखी उसी दौर में गुरु नानक यात्रा पर थे और वे बाबर के आक्रमण के चश्मदीद थे। शहर के बाकी लोगों की तरह गुरु नानक जी को भी बाबर ने कैद किया था। बाबर की कैद में होने के बाद भी गुरु नानक जी ने कीर्तन बंद नहीं किए थे। इस बात का पता चलने पर जब बाबर गुरु नानक जी से मिला तो उनके कीर्तन और उनके चेहरे का नूर देखकर हतप्रभ रह गया। उसने मान लिया कि गुरु नानक जी संत हैं और उसने उन्हें अपनी कैद से रिहा कर दिया। उसने गुरु नानक जी से क्षमा याचना करते हुए धन देने की पेशकश की जिसके प्रतिउत्तर में गुरु नानक जी कहते हैं-

(जन्म साखी)
अर्थात मैं बन्दों से नहीं खुदा से माँगता हूँ। मुझे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए जो भी चाहिए जनता के लिए अथवा परोपकार के लिए चाहिए।
गुरु नानक जी ने ‘बाबरवाणी’ में लिखा है कि ‘बाबरवाणी फिरी गई कुईरू ना रो खाई’ अर्थात बाबर का साम्राज्य फैल रहा है और उसके जुल्मों की हद ये है कि शहजादियों तक ने खाना नहीं खाया है। ‘बाबरवाणी’ में गुरु नानक जी ने बाबर के आक्रमणों का बड़ी गंभीरता के साथ आकलन किया है। उन्होंने बाबर को आततायी शासक बताते हुए उसके शासनकाल को ‘काल’ की संज्ञा दी थी। हिन्दुओं और सिखों की मारकाट को उन्होंने दुनिया के सामने रखा किन्तु दुनिया आज भी गुरु नानक जी की ‘बाबरवाणी’ से अधिक बाबर के महिमामंडन में लिखे गए ‘बाबरनामा’ को सच मानती है। और ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि हमारी नस्लों को षड्यंत्र करके यही पढ़ाया, लिखाया और दिखाया गया है। ‘दी एम्पायर’ इसी कड़ी का एक प्रयास माना जाएगा।
दरअसल, मुगलों का महिमामंडन अंग्रेजों से लेकर उनके उत्तराधिकारी वामपंथियों ने जमकर किया है। सोने की चिड़िया कहलाने वाले भारतवर्ष को उन्होंने मुगलिया काल की बनाई हुई चकाचौंध से जोड़कर जनता को जमकर भ्रमित किया है। यह भी कहा गया कि मुगलों में तीन सौ साल से अधिक भारतवर्ष पर शासन किया जबकि सत्यता यह है कि मुग़ल कभी पूरे भारतवर्ष पर शासन नहीं कर पाये। यहाँ तक कि कथित महान अकबर को भी अपना शासनकाल राजपूतों से संधियाँ करके चलाना पड़ा। औरंगजेब अपने पूरे शासनकाल में युद्धरत रहा। कुल मिलाकर मुगलों के महिमामंडन द्वारा पूर्वर्ती इतिहासकारों ने राष्ट्रदोह का कार्य किया है। इस महान राष्ट्र को मुगलिया सल्तनत का गुलाम बताकर इतिहास को विकृत किया है। और आश्चर्य तो तब होता है जब इस देश का मुस्लिम समुदाय उसी हारे, थके, नकारा बाबर के नाम पर मस्जिद की मांग करके स्वयं अपने अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा देता है। यूँ तो बाबर सुन्नी था किन्तु ‘बाबरी मस्जिद’ के नाम पर शिया समुदाय भी एक हो जाता है। यह तो धर्म को देश से बड़ा बताते की धृष्टता है। देखा जाए तो अब समय आ गया है कि देश के इतिहास का पुनर्लेखन हो तो सत्य पढ़ाया जाए ताकि आने वाली पीढ़ियाँ झूठ के महिमामंडन से भ्रमित न हों। यह सही अवसर भी है और इससे राष्ट्र का बड़ा कल्याण होगा। शेष तो मुगलों के महिमामंडन को राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में मानकर सजा होना चाहिये।
सिद्धार्थ शंकर गौतम राजनीतिक विश्लेषक