
पूर्वांचल में ,पूर्वी उत्तरप्रदेश व बिहार में विशेष रूप से मनाया जाने वाला त्यौहार है जिउतिया।हर व्रत साल अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। जीवित्पुत्रिका व्रत को जितिया या जिउतिया व्रत के नाम से भी जानते हैं। जिस तरह से पति की कुशलता के लिए तीज का व्रत रखा जाता है, ठीक उसी तरह से सन्तान की कुशलता, आरोग्य और सुखमय के लिए माताएं निर्जला व्रत रखती हैं।
इस साल जीवित्पुत्रिका व्रत 10 सितंबर (गुरुवार) को है।
तीज और छठ पर्व की तरह जितिया व्रत की शुरूआत भी नहाय-खाय के साथ ही होती है. इस पर्व को तीन दिनों तक मनाये जाने की परंपरा है. सप्तमी तिथि को नहाय-खाय होती है. उसके बाद अष्टमी तिथि को महिलाएं बच्चों की उन्नति और आरोग्य रहने की मंगलकामना के साथ निर्जला व्रत रखती हैं. वहीं, तीसरे दिन अर्थात नवमी तिथि को व्रत का पारण किया जाता है. जिसे व्रत खोलना भी कहा जाता है.


पूजन विधि
सुबह स्नान करने के बाद व्रती प्रदोष काल में गाय के गोबर से पूजा स्थल को लीपकर साफ कर लें। |
इसके बाद वहां एक छोटा सा तालाब बना लें। |
तालाब के पास एक पाकड़ की डाल लाकर खड़ाकर कर दें। |
अब धर्मात्मा जीमूतवाहन की कुशनिर्मित मूर्ति जल के पात्र में स्थापित करें। |
अब उन्हें दीप, धूप, अक्षत, रोली और लाल और पीली रूई से सजाएं। |
अब उन्हें भोग लगाएं। |
अब मिट्टी या गोबर से मादा चील और मादा सियार की प्रतिमा बनाएं। |
दोनों को लाल सिंदूर अर्पित करें। |
अब पुत्र की प्रगति और कुशलता की कामना करें। |
एक लाल या पीले धागे को बट कर उसे पुत्र रूप में कर गले में धारण करने का भी नियम है। |
इसके बाद व्रत कथा सुनें या पढ़ें। |
व्रत की पौराणिक मान्यता
धार्मिक मान्यताओं की मानें तो महाभारत के युद्ध के दौरान पिता की मौत होने से अश्वत्थामा को बहुत आघात पहुंचा था. वे क्रोधित होकर पांडवों के शिविर में घुस गए थे और वहां सो रहे पांच लोगों को पांडव समझकर मार डाला था. ऐसी मान्यता है कि वे सभी संतान द्रौपदी के थे. इस घटना के बाद अर्जुन ने अश्वत्थामा गिरफ्त में ले लिया और उनसे दिव्य मणि छीन ली थी. अश्वत्थामा ने क्रोध में आकर अभिमन्यु की पत्नी के गर्भ में भी पल रहे बच्चे को मार डाला. ऐसे में अजन्मे बच्चे को श्री कृष्ण ने अपने दिव्य शक्ति से पुन: जीवित कर दिया. जिस बच्चे का नामकरण जीवित्पुत्रिका के तौर पर किया गया. इसी के बाद से संतान की लंबी उम्र हेतु माताएं मंगल कामना करती हैं और हर साल जितिया व्रत को विधि-विधान से पूरा करती हैं.
प्रभु भोलेनाथ से प्रार्थना है कि सभी माताओं के व्रत का फल दें, व सभी सन्तानों को दीर्घायु ,निरोग्य व यश प्रदान करें।