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गब्बर अभी ज़िन्दा है

(लेखक – ज़हीर अंसारी)

गब्बर अभी ज़िन्दा है
अरे ओ सांभा….
कितने का हो गया रे पेट्रोल-डीज़ल
सरदार चने का भाव पूछते तो बता देता, ये डीज़ल-पेट्रोल हमारे घोड़े कहां पीते हैं। कभी ख़रीदा नहीं…
नालायक, जनरल नालेज रखना चाहिए न। कब सरदार का इरादा बदल जाए। घोड़े की जगह गाड़ी-मोटर पर चलने लगे।
अरे ओ कालिया तू बता रे, कितने का हुआ डीज़ल-पेट्रोल।
सरदार, पेट्रोल अठासी रुपए बारह पैसे का….
और डीज़ल….
सरदार अस्सी रुपए उन्नीस पैसे का।
पिछले महीने कितने का था रे।
सरदार, पिछले महीने पेट्रोल सतत्तर रुपए अट्ठावन पैसे का और डीज़ल अड़सठ रुपए इक्तीस पैसे का।
अरे ओ सांभा…. सुना तू ने। एक महीना में कितना महंगा हो गया रे पेट्रोल-डीज़ल। ये रामगढ़ वाले कुछ चीं-पीं नहीं करते क्या। ये गाँव वाले मोटर गाड़ी छोड़कर क्या बसंती के टांगे पर फिरने लगे हैं।
नहीं सरदार। वो जमाना गया जब बसंती की धन्नो सस्ता चना खाकर इठलाया करती थी। अब चना ख़ासा क़ीमती हो गया है। सो धन्नो ने घास खाना शुरू कर दिया है और चना गाँव के गरीब।
कितना चना मिलता है गाँव वालों को।
सरदार पूरे एक किलो, वो भी तीस दिन के लिए।
ये तो बहुत नाइंसाफ़ी। आदमी एक, महीना एक और चना भी एक किलो।
सरदार ये नाइंसाफ़ी नहीं, इंसाफ़ है। सरदार वो क्या है न, रामगढ़ में गरीब-मज़दूर की आबादी बहुत बढ़ गई है। मुफ़्त में सबको ‘पूजाना’ पड़ता है न, इसलिए सब के पेट में जीने लायक़ दाना डालना पड़ता है। चने के साथ अनाज भी दिया जाता है, पूरे पाँच किलो, वो भी मुफ़्त में।
अरे ओ सांभा, तूने सुना, ये कालिया क्या कह रहा है।
हाँ सरदार। ठीक कह रहा है।
फिर ये गाँव वाले हमें अनाज देने में क्यों ‘पिनपिनाते’ हैं।
वो क्या है न सरदार, सब आन-लाइन हो गया है। इनके नाम पर खूब फ़र्ज़ीवाडा होता है। बेचारे गाँव वालों को बमुश्किल अनाज मिल पाता है। जब गाँव वालों को मिलेगा तब हमें देंगे न सरदार। गाँव-गरीब के हिस्से का बहुत सारा अनाज वायरस आनलाईन खा जाता है।
तो क्या गब्बर की टोली भूखे मरेगी..?
नहीं सरदार, आप और आपकी टोली ज़िंदा रहेगी।
वो कैसे……
सरदार आप ठहरे बीहड़ के गवैया डकैत। अकल-वकल है नहीं। बेवजह चीखते रहते हो कि यहाँ से पचास-पचास कोस दूर बच्चा जब रात को रोता है, तो माँ कहती है कि सो जा बेटा, नहीं तो गब्बर आ जाएगा। सरदार, यह सब बातें अब बकवास हो गई हैं। अब गब्बर के नाम से मच्छर भी टस से मस नहीं होता। और सुनो सरदार, आप जैसे बहुत हो गए हैं शहरों में। माल-टाल गाँव पहुँचने से पहले ही वो बहुत सा माल डकार जाते हैं। गाँव वालों तक खुरचन ही पहुँच पाती है।
अरे ओ सांभा, फिर तो ये भी बता दे तू कि रामगढ़ में गाड़ियों की आवाजाही क्यों कम हो गई है। बहुत दिन हो गए परचून का ट्रक नहीं लूटा।
वो क्या है न सरदार, पेट्रोल-डीज़ल के दाम बहुत बढ़ गए हैं। इसलिए वाहन मालिकों की बजी पड़ी है। कोरोना नामक इमपोर्टेड वायरस ने सबकी बैंड बजा रखी है। इस वजह से सब चौपट पड़ा है। नेता-अभिनेता भी दुबके पड़े हैं।
कहां हैं वो ठाकुर के जय और वीरु, जो कहते थे कि सस्ता तेल दिलवाएँगे। गाँव में विकास ही विकास पैदा होंगे। इस सब पर कोई उनसे कुछ पूछता क्यों नहीं।
सरदार, गाँव वालों में इतनी हिम्मत कहाँ। बेचारे किसी तरह से कमा-खाकर ज़िंदगी बसर कर रहे हैं। सरदार, आपने ठाकुर के हाथ भर काटे थे। गाँववालों की तो गर्दन पे बन आएगी।
ये जय और वीरु क्या कर रहे हैं।
सरदार इन दोनों ने तो आपको सुधारने का ठेका लिया था मगर आपकी तम्बाकू खाने की आदत देखकर इरादा बदल दिया है। उनका मानना है कि आप तो ठहरे फटियल, लकीर के फ़क़ीर। कभी बदलोगे नहीं। तम्बाकू चबाओगे और कहीं भी पिच करोगे। या फिर बीड़ी धोंकोगे। इसलिए जय और वीरु अब ठाकुर साहब को बहुत बड़ा और मज़बूत आदमी बनाने के काम में लग गए हैं। इतना बड़ा कि रामलाल जैसे हज़ार सेवक हर वक्त उनके साथ मुस्तैद रहें। जो नोट निकालने से लेकर शाल उढ़ाने के साथ-साथ आप को निपटाने का काम भी कर सकें।
वो तो सब ठीक है सांभा, मगर यह सब क्यों ?, महँगा तेल, महँगा अनाज, ग़रीबी, बेरोज़गारी, कंगाली यही हाल रहा तो फिर हम लूट-मार कैसे करेंगे। बीहड़ में भूखों मर जाएँगे हम सब।
सरदार, अब तो मरना ही पड़ेगा। इन सब से गाँव वाले भी मरने की कगार पर पहुँच गए हैं। सिर्फ़ ज़िंदा इसलिए हैं कि मरने से पहले वो ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ को मरता देखना चाहते हैं। इसलिए सब चुपचाप झेल रहे हैं। मुट्ठी भर लोगों की वजह से गाँववाले अपने धन, इच्छा और भविष्य का त्याग कर रहे हैं और कष्ट भोग रहे हैं।
तो फिर हम जिएँगे कैसे।
सरदार। एक ही रास्ता है अब ज़िंदा रहने का। यह रास्ता पकड़ा तो झक कपड़े, चमचमाती कार, लग्ज़री बंगला, ऐशोंआराम, रक्षकों की फ़ौज और कई पीढ़ियों तक का जुगाड़। ये सब मिलेगा, वो भी फ़ुल इज्जत के साथ। अभी जो आपको खोजते फिर रहे हैं न, फिर वही सलामी ठोंकेंगे।
अच्छा, वो कैसे।
सरदार, सियासत।
अरे ओ सांभा, क्या राय दी है रे तूने, चुनाव कब है, कब है रे चुनाव।

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