
अंकित तिवारी
आंकड़े चौंकाने वाले हैं अप्रैल-जून की तिमाही में भारत की जीडीपी – 23.9 फ़ीसदी दर्ज की गई इतने बुरे दौर में अर्थव्यवस्था को कृषि का थोड़ा सहारा मिला है अकेले इसी सेक्टर की ग्रोथ 3.4 फ़ीसदी यानी पॉजिटिव रही इसके बावजूद खेती किसानी की अनदेखी निरंतर जारी है किसानों के सामने हजार कई चुनौतियां सुरसा की तरह मुंह बाए खड़ी हैं।
आजादी के इतने साल बाद भी खेती किसानी की इतनी ही तरक्की हुई है कि हमारे किसानों की अधिकतम औसत आय चपरासी से भी कम है कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इस सेक्टर पर ध्यान नहीं दिया गया तो हालत और भी खराब हो सकते हैं।
भारत की पहचान एक कृषि प्रधान देश के रूप में रही है लेकिन सभी राजनीतिक दलों का खेती के विकास और किसानों के कल्याण के प्रति रवैया ढुलमुल रहा है किसानों की खुशहाली की बात सभी करते हैं उनके लिए योजनाएं भी बनाते हैं लेकिन खेती की मूलभूत समस्याओं ज्यों की त्यों है वर्षों से किसानों के सामने चार महत्वपूर्ण समस्याएं हैं जिनका हल अब तक कोई नहीं निकाल पाया है।
इन चार समस्याओं का समाधान कब होगा पहला उनकी फसल का वाजिब दाम नहीं मिल रहा।
दूसरा फसल लागत में कमी नहीं आ रही। तीसरा उनके ऊपर कर्ज का भारी दबाव है। चौथा उपज भंडारण की सुविधा नहीं यही समस्या आज भी कायम है मौसम की मार झेल रहे जब अन्नदाता फसल पैदा कर लेता है तो सरकार उसे उचित दाम नहीं दिला पाती ऐसा कोई राज्य नहीं है जहां किसान फसल खराब होने और कर्ज के बोझ तले दबकर जानना दे रहा हो उसके आर्थिक हालात ठीक नहीं है क्योंकि आज भी देश में किसानों की सबसे ज्यादा औसत आय सिर्फ ₹18959 है जबकि सरकारी चपरासियों को भी ₹25000 से कम वेतन नहीं मिलता ।
देश में निरंतर किसानों एवं किसान संगठनों द्वारा स्वामीनाथन आयोग द्वारा की रिपोर्ट लागू करने की सिफारिशें की गई परंतु आज तक किसी भी सरकार ने ना ही किसानों आमदनी को बढ़ाने के लिए ठोस कदम उठाए और ना ही स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू की एक और जहां चौथा स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया देश के किसानों के मुद्दे और आत्महत्या जैसी खबरों को छुपाकर सुशांत सिंह राजपूत जैसे केस्को मीडिया ट्रायल चलाकर टीआरपी बटोरने में लगा हुआ है और देश के अन्य मुद्दों की तरफ ध्यान आकर्षित नहीं करता है।