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दिसंबर 1949, जब अयोध्या में प्रभु श्रीराम की मूर्ति प्रकट होने की उठी आवाज । कहानी के के नायर की।

वास्तव में कार सेवक शब्द संस्कृत से लिया गया है। कार का मतलब होता है कर यानी हाथ, और सेवक का अर्थ होता है, सेवा करने वाला। जो लोग किसी धार्मिक कार्य या संस्था के लिए परोपकार से जुड़ा काम नि:स्वार्थ व नि:शुल्क करते हैं, उन्हें कार सेवक कहा जाता है। चूंकि ज्यादातर परोपकार से जुड़े कार्य धर्म से जोड़कर ही किए जाते हैं, इसलिए कार सेवक शब्द का अर्थ धार्मिक कार्यों को नि:स्वार्थ और नि:शुल्क करने वाले व्यक्ति से लिया जाता है। उस दौरान विश्व हिंदू परिषद द्वारा राम मंदिर बनवाने के लिए जो लोग वॉलेंटियर के रूप में अयोध्या भेजे गए थे, उन्हें कार सेवक कहा गया।

1992 में ध्वस्त ढांचे के मलबे से निकले एक मोटे पत्थर के खंड के अभिलेख से उस स्थल पर एक पुराने हिंदू मंदिर के पैलियोग्राफिक (लेखन के प्राचीनकालीन रूप के अध्ययन) प्रमाण प्राप्त हुए। विध्वंस के दिन 260 से अधिक अन्य कलाकृतियां और प्राचीन हिंदू मंदिर का हिस्सा होने के और भी बहुत सारे तथ्य भी निकाले गये। शिलालेख में 20 पंक्तियां, 30 श्लोक (छंद) हैं और इसे संस्कृत में नागरी लिपि में लिखा गया है। ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दी में ‘नागरी लिपि’ प्रचलित थी। प्रो॰ ए. एम. शास्त्री, डॉ॰ के. वी. रमेश, डॉ॰ टी. पी. वर्मा, प्रो॰ बी.आर. ग्रोवर, डॉ॰ ए.के. सिन्हा, डॉ॰ सुधा मलैया, डॉ॰ डी. पी. दुबे और डॉ॰ जी. सी. त्रिपाठी समेत पुरालेखवेत्ताओं, संस्कृत विद्वानों, इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के दल द्वारा गूढ़ लेखों के रूप में संदेश के महत्वपूर्ण भाग को समझा गया।

शुरू के बीस छंद राजा गोविंद चंद्र गढ़वाल (1114-1154 ई.) और उनके वंश की प्रशंसा करते हैं। इक्कीसवां छंद इस प्रकार कहता है: “वामन अवतार (बौने ब्राह्मण के रूप में विष्णु के अवतार) के चरणों में शीश नवाने के बाद अपनी आत्मा की मुक्ति के लिए राजा ने विष्णु हरि (श्रीराम) के अद्भुत मंदिर के लिए संगमरमर के खंबे और आकाश तक पहुंचनेवाले पत्थर की संरचना का निर्माण करने और शीर्ष चूड़ा को बहुत सारे सोने से मढ़ दिया और वाण का मुंह आकाश की ओर करके इसे पूरा किया – यह एक ऐसा भव्य मंदिर है जैसा इससे पहले देश के इतिहास में किसी राजा ने नहीं बनाया।”इसमें आगे भी कहा गया है कि यह मंदिर, मंदिरों के शहर अयोध्या में बनाया गया था।

यूं तो राम मंदिर आंदोलन के अनेक नेता बने, अनेक लोगों ने इस आंदोलन में अपनी भूमिका अदा की। लेकिन वर्ष 1949 में 22 और 23 दिसंबर की घटना को याद किया जाए जब अयोध्या में यह खबर फैली कि श्रीराम मूर्ति के रूप में प्रकृट हुए हैं। तो तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के फैसले पर लगातार दो बार असमर्थता जताते हुए मूर्तियों को ना हटवाने के कारण फैजाबाद के तत्कालीन जिलाधिकारी (डीएम) के.के नायर ने देश के सामने सबसे बड़े हिंदूवादी चेहरे के रूप में अपनी पहचान बनाई। और उस आदेश को न मानने का परिणाम रहा कि जिलाधिकारी और उनकी पत्नी भारत की लोकसभा में चुनकर पहुंचे। जबकि उनका ड्राइवर उत्तर प्रदेश विधानसभा पहुंचने में कामयाब रहा।

क्या था 22 व 23 दिसंबर की आधी रात का मामला
राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद में फैजाबाद के तत्कालीन जिलाधिकारी के.के नायर का नाम हमेशा राम मंदिर समर्थकों की तरफ से बड़े सम्मान से लिया जाता रहा है। आजादी के बाद वर्ष 1949 में 22 और 23 दिसंबर को अयोध्या में इस मामले को लेकर शोर मच गया कि राम जन्मभूमि पर भगवान श्रीराम प्रकट हुए हैं। लिब्राहन आयोग की रिपोर्ट में मौके पर तैनात कांस्टेबल के हवाले से लिखा गया कि इस घटना की सूचना कॉन्स्टेबल माता प्रसाद ने थाना इंचार्ज राम दुबे को दी कि 50 लोगों का एक समूह परिसर का ताला तोड़कर दीवारों और सीढ़ियों को फांद कर अंदर घुस आया है और उन्होंने श्री राम की प्रतिमा स्थापित कर दी। साथ ही उन्होंने पीले और गेरुआ रंग में श्रीराम भी लिख दिया है।

आखिर कौन थे के.के नायर
केरल में जन्मे के. के. नायर ने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद इंग्लैंड चले गए। मात्र 21 वर्ष की आयु में ही उन्होंने भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा पास कर ली थी और अधिकारी बन गए थे। अयोध्या आंदोलन की घटनाओं पर प्रकाशित की गई एक किताब ‘युद्ध में अयोध्या’ के लेखक हेमंत शर्मा ने दर्शाया है कि केरल के अलेप्पी के रहने वाले के. के. नायर 1930 बैच के आईपीएस तत्कालीन आईसीएस अधिकारी थे। बाबरी मामले से जुड़े आधुनिक भारत के एक ऐसे शख्स हैं, जिनके कार्यकाल में इस मामले में सबसे बड़ा बदलाव आया और देश के सामाजिक राजनीतिक ताने-बाने पर इसका दूरगामी प्रभाव पड़ा।

के के नायर

उनके जिस फैसले ने उनको बनाया हिंदूवादी
के.के. नायर को 1 जून 1949 को फैजाबाद के कलेक्टर के रूप में नियुक्त किया गया। 22 और 23 दिसंबर 1949 को आधी रात में भगवान श्री राम की मूर्तियां प्रकृट होने की खबर आई, तो उस समय देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत से तत्काल मूर्तियां हटवाने के लिए कहा। उत्तर प्रदेश सरकार ने चिट्ठी लिखकर जिला अधिकारी केके नायर को मूर्तियां हटवाने का आदेश दिया। लेकिन जिलाधिकारी नायर ने दंगों और हिंदुओं की भावनाओं को भड़कने के डर का हवाला देते हुए इस आदेश को पूरा करने में असमर्थता जताई।

एक बार पुनः तत्कालीन प्रधानमंत्री के आदेश को मानने में असमर्थता जताई।
पुन: जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने मूर्तियां हटाने के लिए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत से कहा तो एक बार फिर गोविंद बल्लभ पंत ने कलेक्टर के.के. नायर को मूर्तियां हटाने के लिए आदेश दिया। तब के.के. नायर ने उत्तर प्रदेश सरकार को पत्र लिखकर कहा कि मूर्तियां हटाने से पहले मुझे हटाया जाए। परंतु उस समय देश में फैले सांप्रदायिक माहौल की परिस्थितियों को भांपते हुए उत्तर प्रदेश तथा केंद्र सरकार पीछे हट गई। इसके कुछ समय बाद ही 1952 में कलेक्टर के.के. नायर ने अपने पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली। और वे देश की चौथी लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की बहराइच की सीट से जनसंघ ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया। अपने सेवाकाल में लिए गए फैसलों के कारण हिन्दुवादी छवि का फायदा उन्हें मिला वे लोकसभा में भी पहुंच गए। कहां जाता है कि मूर्तियां ना हटवाने के कारण नायर हिंदुत्व के बड़े चेहरे के रूप में अपनी छवि देश में स्थापित कर चुके थे। उनकी पत्नी शकुंतला नायर भी बहराइच जनपद के ही कैसरगंज लोकसभा सीट से तीन बार जनसंघ के ही टिकट पर लोकसभा पहुंची। के.के. नायर की हिन्दू वादी छवि का फायदा उठाकर उनके ड्राइवर भी उत्तर प्रदेश विधानसभा का सदस्य बन गया।

7 दिसंबर, 1977 में के.के. नायर ने दुनिया को अलविदा कह दिया। कहा जाता है कि के.के. नायर भी उन प्रमुख कारणों में से एक हैं जिनके कारण आज राम मंदिर बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ है।

pratyancha web desk

प्रत्यंचा दैनिक सांध्यकालीन समाचार पत्र हैं इसका प्रकाशन जबलपुर मध्य प्रदेश से होता हैं. समाचार पत्र 6 वर्षो से प्रकाशित हो रहा हैं , इसके कार्यकारी संपादक अमित द्विवेदी हैं .

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