विधानसभा चुनावों में 10 प्रतिशत सीटें भी नहीं ला सकी कांग्रेस

भारत भूषण
पांच राज्यों में सम्पन्न हुए चुनावी रण से कांग्रेस बुरी तरह पराजित हो कराहती सी नज़र आ रही है, आलम ये है कि पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं को अभी से उन राज्यों में कांग्रेस के भविष्य की चिंता होने लगी है जिनमे चुनाव होना हैं। दरअसल देश के पांच राज्यों गोआ, मणिपुर, पंजाब, उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश की कुल 690 विधानसभा सीटों पर सम्पन्न हुए चुनावों में परिणाम कांग्रेस के अनुकूल नहीं रहे। पांचों राज्यों में सभी सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस को कुल 55 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। सीधे तौर पर कहा जाए तो कुल 690 विधानसभा सीटों का दस प्रतिशत भी कांग्रेस के खाते में नही आया, जबकि भाजपा 376 सीटों पर सफलता मिली है।
बता दें कि गोवा की कुल 40 विधानसभा सीटों में से भाजपा को 20 और कांग्रेस को 12 सीटें ही प्राप्त हुईं हैं, वहीं मणिपुर की बात की जाए तो 60 सीटों वाले इस प्रदेश में मात्र 5 सीटें ही कांग्रेस को नसीब हुईं, जबकि बीजेपी ने वहां 32 सीटों को कब्जा लिया। हालांकि पंजाब की 117 सीटों में से 92 पर बाज़ी मारने वाली आम आदमी पार्टी ने कमाल का प्रदर्शन किया जबकि वहाँ भाजपा को 2 और कांग्रेस को 18 सीटें मिलीं। 70 सीटों वाले राज्य उत्तराखंड में 18 सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी विजयी हुए और 48 सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों ने जीत दर्ज कराई, देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश की बात की जाए तो यहां 403 विधानसभा सीट हैं जिनमे से भाजपा ने 274 सीटों पर परचम लहराया तो कांग्रेस को महज 2 सीटें ही प्राप्त हुईं। स्पष्ट है कि पांच में से चार राज्यों में भाजपा ने बहुमत प्राप्त किया, वहीं कांग्रेस का प्रदर्शन कोई कमाल नहीं दिखा पाया। विचारणीय है कि कांग्रेस इन राज्यों में कभी खासी मजबूत स्थिति में हुआ करती थी लेकिन अब कांग्रेस का वोट शेयर क्यों लगातार घटता जा रहा है, इसपर कांग्रेस के प्रदेश संगठनों सहित आलाकमान को भी आत्मचिंतन करना चाहिए। राजनीति की नब्ज टटोलने वालों की मानें तो वरिष्ठ नेताओं की अनर्गल बयानबाजी और युवा नेताओं के दलबदल से कांग्रेस के ज़मीनी कार्यकर्ताओं का मनोबल कमज़ोर हो रहा है, ऐसे समय मे पांच राज्यों की कमरतोड़ पराजय ने कांग्रेस की उम्मीद राहुल और प्रियंका के जनाधार की कलई खोल दी है। हकीकत यही है कि मोदी और भाजपा से जीतना फ़िलहाल कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर ही है, इस सच्चाई को स्वीकार करना ही होगा।
जनता का भरोसा हासिल न कर पाना भी हार की बड़ी वजह
एक समय देश के अधिकांश क्षेत्र पर राज करने वाली सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी पर आज मतदाता भरोसा नहीं कर पा रहे इसके अपने क्षेत्रीय कारण भी हो सकते हैं। लेकिन एक कारण जो सर्वविदित है वो यह कि कांग्रेस मतदाताओं को रिझाने व उनका विश्वास जीतने में लगातार नाकाम साबित हो रही है, लगातार गिरते और शिफ्ट होते वोट शेयर इसका पुख्ता उदाहरण हैं। वहीं जानकारों की मानें तो कांग्रेस की इस स्थिति के जिम्मेदार पार्टी के ही बड़े नेता हैं, जिनके विवादित बयान आज भी जनता के जेहन में बसे हुए हैं। हालांकि राहुल प्रियंका अपने हिस्से की मेहनत करते नज़र आ रहे हैं लेकिन कमतर राजनीतिक अनुभव के चलते उनके फैसलों की कीमत भी पार्टी को चुकाना पड़ रही है। कार्यकर्ता की मजबूती किसी भी दल की जीत के लिए अनिवार्य होती है इसलिए आज कांग्रेस की पहली प्राथमिकता उन मैदानी कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता देने की होनी चाहिए जो इतने बुरे दौर में भी संगठन के साथ खड़े हैं और भाजपा के प्रचंड वेग से टकराने का साहस दिखा रहे हैं।