
भव्य शिखर पर बसा हुआ, मां पूर्णा का दरबार
यह उद्धार का मार्ग सरल ,यहां हर इच्छा हो साकार*
अनुभव अवस्थी
धार्मिक आस्था का प्रतीक आदिशक्ति मां पूर्णागिरि मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड प्रान्त के टनकपुर में अन्नपूर्णा शिखर पर 55०० फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यह माता का स्थान उत्तराखंड के चम्पावत से 95 कि॰मी॰की दूरी पर तथा टनकपुर से मात्र 25 कि॰मी॰की दूरी पर स्थित है।

उत्तराखंड:“देवभूमि”उत्तराखंड का सौंदर्य पूरे जहां में सर्वविदित है।कुदरत ने यहां चहुं ओर अलौकिक सौंदर्य की छटा बिखेरी हुई है।इसकी खूबसूरती सिर्फ यहां के पहाड़ों ,नदियों और वादियों में ही नही बल्कि ऋषि मुनियों की सहेजी इस पावन भूमि का कण-कण अपने आप में बेहद अदभुत है।देवों की चुनी इस धरती में कदम कदम पर एक से एक खूबसूरत मंदिर देखने को मिलते हैं।यहाँ भक्ति में डूबे बहुत से पवित्र तीर्थ स्थल हैं जो श्रद्धालुओं को दूर -दूर से खींचे लिए आते हैं।हर पावन तीर्थ की स्थापना के पीछे अपनी रहस्यमयी और आलोकिक कथा है । यहाँ की पावन धरती भगवान की श्रद्धा में डूबे भक्तों को खूब भाति है जिसके मोह में पर्यटक हज़ारों की संख्या में यहाँ आते हैं।उन्हीं में से एक धाम है माता पूर्णागिरी का धाम। आदिशक्ति के इस दरबार की गणना भारत के 51 शक्तिपीठों में की जाती है। यह 108 सिद्ध पीठों में से एक है। यह स्थान महाकाली की पीठ माना जाता है। कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति की कन्या और भगवान शिव की अर्धांगिनी देवी सती की नाभि का भाग यहाँ पर विष्णु चक्र से कट कर गिरा था। प्रतिवर्ष इस शक्ति पीठ की यात्रा करने आस्थावान श्रद्धालु कष्ट सहकर भी यहाँ आते हैं। जैसा कि पूर्व प्रचलित है कि राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री देवी सती ने अपने पति महादेव के अपमान के विरोध में अपने पिता दक्ष प्रजापति द्वारा आयोजित यज्ञ के कुण्ड में स्वयं कूदकर प्राण आहूति दे दी थी। भगवान विष्णु ने अपने चक्र से महादेव के क्रोध को शान्त करने के लिए देवी सती पार्वती के शरीर के 64 टुकडे कर दिये। देवी सती की देह लेकर भगवान शिव आकाश में विचरण करने लगे भगवान विष्णु ने शिव जी के ताण्डव नृत्य को देखकर उन्हें शान्त करने की दृष्टि से देवी सती के शरीर के अंग पृथक – पृथक कर दिए। जहॉ-जहॉ पर सती के अंग गिरे वहॉ पर शान्ति पीठ स्थापित हो गये।कोलकाता में केश गिरने के कारण महाकाली , हिमाचल के नगरकोट में स्तनों का कुछ भाग गिरने से बृजेश्वरी, हिमाचल के ज्वालामुखी में जीह्वा गिरने से ज्वाला देवी, हरियाणा के पंचकुला के पास मस्तिष्क का अग्रिम भाग गिरने के कारण मनसा देवी, कुरुक्षेत्र में टखना गिरने के कारण भद्रकाली,सहारनपुर के पास शिवालिक पर्वत पर शीश गिरने के कारण शाकम्भरी देवी, कराची के पास ब्रह्मरंध्र गिरने से माता हिंगलाज भवानी, हिमाचल में ही चरणों का कुछ अंश गिरने से चिंतपुर्णी, आसाम में कोख गिरने से कामाख्या देवी,हिमाचल के नयना देवी मेंं नयन गिरने से नैना देवी आदि शक्तिपीठ बन गये। पूर्णागिरी में देवी सती का नाभि अंग गिरा वहॉ पर देवी की नाभि के दर्शन व पूजा अर्चना की जाती है।वहॉ एक शक्ति पीठ स्थापित हुआ। नवरात्रि के पावन महीने में भक्त अधिक संख्या में आते हैं। भक्त यहाँ पर दर्शनों के लिये भक्तिभाव के साथ पहाड़ पर चढ़ाई करते हैं। पूर्णागिरी पुण्यगिरी के नाम से भी जाना जाता है। यहा से काली नदी निकल कर समतल की ओर जाती है वहा पर इस नदी को शारदा के नाम से जाना जाता है।
इस शक्ति पीठ में दर्शनार्थ आने वाले यात्रियों की संख्या वर्ष भर में 25 लाख से अधिक होती है।