प्रकृति की सुंदरता और ईश्वर की दिव्यता का समागम है मध्य प्रदेश में बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान।

अनुभव अवस्थी

एक ऐसा स्थान जो रहस्यों से भरा होने के साथ-साथ दैवीय भी हैं| एक ऐसा प्राचीन स्थल जहाँ भगवान भी कई वर्षों से विश्राम कर रहे हैं| यहाँ पर आपकों भगवान विष्णु के 12 अवतारों के दर्शन एक साथ हो सकते हैं| अगर आपको किसी ऐसे प्राचीन स्थान की तलाश है, जहाँ पर आप प्रकृति के साथ-साथ प्राचीन सभ्यताओं और रहस्यों का भी दीदार करें तो ऐसी ही एक जगह है ‘बांधवगढ़’ का किला|
बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान मध्यप्रदेश के उमरिया जिले में स्थित है। यह वर्ष 1968 में राष्ट्रीय उद्यान बनाया गया था। इसका क्षेत्रफल 437 वर्ग किमी है। यहां बाघ आसानी से देखा जा सकता है। यह मध्यप्रदेश का एक ऐसा राष्ट्रीय उद्यान है जो 32 पहाड़ियों से घिरा है। यहां पर एक प्राचीन किला है इस किले का उल्लेख नारद पुराण और शिव पुराण में भी किया गया है| किले के अन्दर प्रवेश करने के लिए एक ही मार्ग है जो घने और सुन्दर जंगलों के बीच से होकर गुजरता है| यहाँ पर अन्दर एक सुरंग भी बनाई गई थी जो रीवा में जाती थी|
यहाँ पर किले के अन्दर सात कभी न सूखने वाले तालाब हैं| इन तालाबों में हर मौसम में पानी भरा रहता है| बताया जाता है कि इस किले को राजा गुलाब सिंह और उनके पिता मार्तंड सिंह द्वारा ख़ुफ़िया किले के रूप में इस्तेमाल किया जाता था और यहाँ पर कई आवश्यक फैसलों के साथ गुप्त रणनीतियां बनाई जाती थी|

अब तक आपने भगवान विष्णु की अनेक प्रतिमाएं देखी होंगी। क्षीर सागर में विश्राम मुद्रा में उनका स्वरूप कम ही देखने मिलता है। आज हम आपको ऐसे ही स्थान पर ले जा रहे हैं। जो है तो एक किले में लेकिन राष्ट्रीय उद्यान के लिए पहचाना जाता हैै। भगवान विष्णु की विशालकाय प्रतिमा अति आकर्षक एवं रहस्यात्मक है। शेष शय्या चट्टान को हाथों से काटकर बनाई गई है। यह मूर्ति कम से कम 2000 साल पुरानी मानी जाती है।मध्यप्रदेश उमरिया जिले में स्थित बांधवगढ़ में। जिसे आमतौर पर लोग नेशनल पार्क के लिए जानते हैं।
वहीं बांधवगढ़ में मौजूद किला भी एक रहस्य की ओर लेकर जाता है। बांधवगढ़ में मौजूद इस किले के बारे में कई किवदंतियां प्रचलित हैं। यहां के स्थानीय लोगों के मुताबिक इस किेले में अब कोई नहीं आता-जाता, लेकिन सैलानी यहां आए दिन अपना बसेरा डाले रहते हैं। यह किला बांधवगढ़ पठार पर है। इस बात में कितनी सच्चाई है हम ये नहीं कह सकते पर कहा जाता है कि बांधवगढ़ वह किला है, जिसे प्रभु श्रीराम ने अपने भाई लक्ष्मण को दिया था। बांधव मतलब भाई और गढ़ मतलब फोर्ट। लक्ष्मण को बांधवधीश की उपाधि यहीं से मिली। बाद में यह किला रीवा के राजाओं के अधीन रहा। किले के बगल से चरनगंगा नदी बहती है। कहा जाता है कि इस नदी का स्रोत विष्णु के चरण हैं। इसी कारण इस नदी का नाम चरणगंगा पड़ा।यहां से ही इस स्थान का नाम बांधवगढ़ पड़ा माना जाता है। बाद में बांधवगढ़ में महाराजा रीवा का राज था। किले पर जाने से पहले यहां भगवान विष्णु की लेटी हुई वह प्रतिमा है, जिसे शेष शय्या कहते हैं। साल में एक बार जन्माष्टमी के समय यहां पर मेला लगता है। स्थानीय लोगों का मानना है कि शेष शय्या पर लेटे हुए भगवान विष्णु जन्माष्टामी के दिन जाग जाते हैं और हर मनोकामना पूरी करते हैं।
