एक सवाल वो तमाम बिहारी बुद्धिजीवियों से जो खूब ज्ञान बखारते हैं। एक सवाल उन तमाम प्रशासनिक अफसरों से जो कि बिहार से है, और एक सवाल उन तमाम नेताओं से जो देश के लिए जान देने की बात करते हैं और अपने राज्य में कुछ नहीं करते । जिस तरीके से दिल्ली, पंजाब, महाराष्ट्र व देश के अन्य कोनों से मजदूर पैदल जाने को मजबूर हुए आखिर आप उन्हें आजादी के सात दशक बीत जाने के बाद भी बिहार में ही रोजगार क्यों नहीं दिलवा पाएं? कमोबेश हर वर्ष बाढ़ की वजह से पूरा बिहार बर्बाद हो जाता है उन्हें उनकी स्थिति पर छोड़ दिया जाता है। इस बार बिहार पर दो गुना मार पड़ी है एक तरफ है कोरोना दूसरी तरफ है बाढ़ , बिहार की जनता को अनाथ की तरह छोड़ दिया गया है? करोड़ों के बांध और पुल जो कि बिहार के जनता की हिफाज़त को आश्वस्त करता था वे भी नेताओं के वादे की तरह खोखले निकले और ध्वस्त हो गए। साथ ही बाढ के पानी के साथ नेताओं के वादे भी बह गए। आज पत्रकारिता में तकरीबन 80 प्रतिशत लोग बिहार से है वे क्यों नहीं अपने राज्य की दिक्कत को उजागर कर पाएं? आखिर क्यों नहीं बिहार में एक भी अच्छी विश्वविद्यालय बना पाए ।